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वृहतपागच्छ:
इस गच्छ के हेमचंद्राचार्य का उल्लेख 1163 ई. में सिरोही के धराद के एक प्रतिमा लेख से प्राप्त होता है ।' तपागच्छ का उद्भव संवत् 1228 में माना जाता है, किन्तु इसके पूर्व भी तपागच्छ वृहदतपा के रूप में अस्तित्व में था । इसे वृद्धतपा भी कहते हैं ।
वायटगच्छ
इस गच्छ का उत्पत्ति स्थल अज्ञात है। सिरोही के अजितनाथ मंदिर में 1078 ई. में एक प्रतिमालेख में इसका उल्लेख है । 2
धारागच्छ
इस गच्छ की उत्पत्ति मालवा की धारा नगरी में हुई। सिरोही के अजितनाथ मंदिर में 1177 ई. में इस गच्छ की प्रतिमा हैं। 3
अन्य गच्छों के प्राचीनतम लेख
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अन्य गच्छों के प्राचीनतम लेखों में जालोर से चंद्रगच्छ का 1182 ई. ' का और 1125 ई. ' का, यशसूरि गच्छ का अजमेर से 1185 ई. 'का, सेलाना से भावदेवाचार्य गच्छ का
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1157 ई. ' का, और बालोतरा से भावहर्ष गच्छ का 9528 ई. के अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
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पूर्णिमा गच्छ • अन्य गच्छों में पूर्णिमा गच्छ का उद्भव 1179 ई. अथवा 1102 ई. में हुआ। इसकी तीन शाखाएं हैं- प्रधानशाखा, भीमपल्लीय शाखा और साधु शाखा । 1347 और 1567 ई. के बीच इस गच्छ के 43 प्रतिमा लेख मिले हैं । "
पूर्णिमा पक्षीय - 1329 ई. और 1547 ई. के मध्य के मध्य 28 मूर्तिलेख इस गच्छ के प्राप्त हुए हैं । "
पूर्णिमापक्षे भीमपल्लीय गच्छ
1519 ई. 12 में मिले हैं।
1. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 85
2. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 7
3. वही, क्रमांक 36
4. जैन लेखसंग्रह (नाहर), क्रमांक 899
5. अर्बुदा प्रदिशणा लेख संदोह
6. Jain Sects & School, 59
7. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 24
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
10. प्रतिष्ठा लेखसंग्रह परि. 2, पृ 226
11. वही, क्रमांक 521
12. वही, क्रमांक 962
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8. जैन लेख संग्रह (नाहर), क्रमांक 736
9. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 178, 70, 273, 54, 139, 360, 119, 221, 18, 94, 121,
356, 28, 2, 368, 56, 262, 32, 140, 141, 93, 71, 8, 261, 79, 168, 11, 95, 126,
217, 166, 207, 31, 246, 101
इस गच्छ के उल्लेख 1456 ई. " और
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