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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 97 आगम साहित्य आगमों का मूल नाम अंग है। इनकी संख्या 12 है, इसलिये इन्हें द्वादशांग कहते हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा मूल आगमों के साथ नियुक्तियों को मिलाकर 45 आगम मानता है। इसमें 11 अंग, 1 2 उपांग, 6 मूलधन आदि 10 पइन्ना हैं और कोई 84 आगम भी मानते हैं। श्रुतरूप परम पुरुष के अंगों के तुल्य होने से इन्हें द्वादशांग कहते हैं। अंगों को आगम भी कहते हैं। गणधरों द्वारा रचे गये सूत्रों को सूत्रागम कहते हैं। व्यवहार सूत्र में प्रथम आचरांग सूत्र से लेकर अष्टम पूर्व पर्यन्त अंगों और पूर्वो को तो श्रुत कहा गया है और नवम् आदि शेष छ पूर्वो को आगम कहा गया है। इसका भेद है कि जिससे अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान हो, वे आगम हैं। यों समस्त आगमिक साहित्य को श्रुत कहते हैं । 'श्रुत' का अर्थ है सुना हुआ। तीर्थंकारों से सुनकर गणधर आगमों की रचना करते हैं। परम्परा से आने के कारण आगम कहते हैं। 'विशेषावश्यक' में लिखा है कि तीर्थंकर रूपी कल्पवृक्ष से जो ज्ञानरूपी पुष्पों की वृष्टि होती है, उन्हें लेकर गणधर माला में गूंथ देते हैं।। श्वेताम्बर आगमों में एक नया नाम मिलता हैगणिपिडग- गणधर का पिटारा। बारह अंग- द्वादश अंग निम्नानुसार हैं। 1. आचरांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्या प्रज्ञप्ति 6. ज्ञातृधर्म कथा 7. उपासकाध्ययन 8. अन्तकृद्दश 9. अनुत्तरोपपादिकदश 10. प्रश्न व्याकरण 11. विपाक सूत्र 12. दृष्टिवाद 1. आचरांग इसमें मुनि की आचारसंहिता है। इसमें 18000 पद हैं। आचरांग सूत्र' पर नियुक्ति है, जिसे भद्रबाह कृत कहा जाता है। एक चूर्णि है और शीलांक (876 ई.) की टीका है। 1. विशेषावश्यक भाष्य तं नाण कुसुम बुट्टि घेतुं वीयाइबुद्धओ सव्वं । ___ गंथति पवयणट्ठा माला इव चित्त कुसुमाणं ॥ 2. श्री देवेनु मुनि शास्त्री, जैन आगम साहित्य, पृ. 30 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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