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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 80 एक साधु मालूम होता है। ___ डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार ‘पट्ट के ऊपर भाग के स्तूप के चार तीर्थंकर है, जिनमें पार्श्वनाथ (सर्पफणालंकृत) और चौथे सम्भवत: भगवान महावीर है। पहले दो ऋषभनाथ और नेमिनाथ हो सकते हैं। पर तीर्थंकर मूर्तियों पर न कोई चिह्न है और न वस्त्र । पट्ट में नीचे एक स्त्री और उसके सामने एक नग्न श्रमण खुदा हुआ है। वह एक हाथ में सम्मानी और बाएं हाथ में एक कपड़ा (लंगोट) लिये हुए हैं, शेष शरीर नग्न है। 2 सम्भवत: श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अर्धफालक सम्प्रदाय का प्रारम्भिक रूप यही प्रतीत होता है। श्वेताम्बराचार्य हरिभद्र के 'संबोधि प्रकरण' से प्रकट होता है कि विक्रम की 7वीं 8वीं शताब्दी तक श्वेताम्बर साधु भी मात्र एक कटिवस्त्र रखते थे। तथा जो साधु उस कटिवस्त्र का उपयोग निष्कारण करता था, वह कुसाधु माना जाता था। प्रारम्भ में शरीर का गुह्य अंग ही ढाँकने का विशेष ख्याल रखता था। पीछे यह धागे से कमर में बांधा जाने लगा। इसे चोलपट्ट कहते हैं। चोल चुल्ल से बना है, जिसका अर्थ है - क्षुद्र पट्ट। अर्धपालक सम्प्रदाय का अस्तित्व किसी की कल्पना का विषय न होकर वास्तविक ही है और वही वर्तमान श्वेताम्बर समाज का पूर्वज भी है। कथा अटपटी सी है। किसी नगरी के राजा के आदेश मात्र से अर्धफालक से श्वेताम्बर बन जाना सम्भव प्रतीत नहीं होता है। __ पं. बेचरदास के अनुसार, वलभी नगरी में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति बहलाने में ऐतिहासिक तथ्य निहित है, क्योंकि वर्तमान में उपलब्ध श्वेताम्बरीय आगमों का संकलन वलभी नगरी में ही किया गया और उनकी संकलना और लेखन के पश्चात् श्वेताम्बर-दिगम्बर भेद की एक अटूट दीवार खड़ी हो गई, जिसने दोनों को सर्वदा के लिये पृथक कर दिया। श्वेताम्बर साहित्य से वीर निर्वाणके 609 वर्ष बीतने पर रथवीरपुर में बोटिक शिवमूर्ति से बोटिक मत उत्पन्न हुआ। इसकी कथा है कि रथवीरपुर में शिवभूति नाम का एक क्षत्रिय रहता था। वह रात्रि को बहुत विलम्ब से आताथा। एक रात देर से अपने पर मा ने द्वार नहीं खोला। वह साधु बन गया। राजा ने उसे बहुमूल्य रत्न कम्बल दिया। एक दिन आचार्य ने शिवभूति की अनुपस्थिति में उस रत्न कम्बल को फाड़कर उसके पैर पोंछने के आसन बना दिये । एक दिन शिवभूति ने कहा, जिनकल्प क्यों नहीं धारण करते ? उत्तर था- जम्बूस्वामी के पश्चात् जिनकल्प का विच्छेद हो गया है। उसने कहा, मैं उसे धारण करूंगा। उसने वस्त्र त्याग दिये। उसकी बहन नमस्कार करने आई, वह भी नग्न हो गई। वह नगर में भिक्षा मांगने गई, तब एक गणिका ने उसे वस्त्र पहना दिये। नंगी स्त्री वीभत्स लगती है, इसलिये शिवभूति ने उसे सवस्त्र रहने की आज्ञा दे दी। पश्चात् शिवभूति ने कोडिन्स और कोट्टवीर नाम के दो को अपना शिष्य बना लिया। इस प्रकार बोटिक शिवभूति से बोटिकों का मत उत्पन्न हुआ। दिगम्बर लेखक दिगम्बर वेश से जैन मुनि का साधारण आचार मानकर दुर्भिक्षजनित 1. India Antiquary, Part II Page 316 2. डा. वासुदेव अग्रवाल, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग 10, 480 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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