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भूमिका
न्यायालयों की भाषा का इतिहास बड़ा मनोरंजक है । 'प्राचीन काल की बात जाने दीजिये, उसके लिये न तो हमारे पास स्थान है और न उपयुक्त अवसर । परन्तु हमारे कितने ही पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि तेरहवीं से अठारहवीं शताब्दी -जब न्यायालय की वैधानिक भाषा प्रत्यक्ष श्रथवा श्रप्रत्यक्षरूप से फ़ारसी थी तब भी इस देश के न्यायालयों का अधिकांश काम स्थानीय भाषा तथा लिपि में होता था । फ़ारसी का व्यवहार शाही दरबारों तथा क़ाज़ियों के न्यायालयों तक ही सीमित था ।
तक
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अंगरेज़ी शासन के प्रभात काल में हिन्दी तथा नागरी का कोई विरोध न था । उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में जहां जहां कंपनी का राज्य था, वहां श्रादेश दिया गया था कि सब विधानों का अनुवाद फ़ारसी तथा 'हिंदवी' में किया जाय । फ़ारसी का पल्ला अंगरेज़ दिल्ली के वैध उत्तराधिकारी बनने के लिये पकड़े थे, नहीं तो उसकी नींव उस समय हिल चुकी थी । अवध के दरबार की सरकारी भाषा उर्दू थी, पर जनता की भाषा हिंदी और लिपि नागरी थी, और उसकी अवहेलना कठिन थी । फ़ारसी का प्रचार कुछ विद्वानों तक ही सीमित था ।
जिस समय का संकेत हमने ऊपर किया है, उस समय साधारण अंगरेज़ हिन्दी तथा नागरी से बिलकुल अपरिचित था । इसका सबसे बड़ा कारण यह था, कि उसका अधिकांश काम सरकारी सरों तथा खानसामों से रहताथा, जो उर्दू
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