________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सेठियाग्रंथमाला
www.kobatirth.org
(४२)
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मालिङ्गत्यपि पुण्यसंहतिरथ श्रीमुक्तिबाला वरा, नित्यं तं वृणुते ददाति विभवं धर्माय यो मानवः । ७९ ।
जो मनुष्य अपनी सम्पत्ति को धार्मिक कामों में लगाता है, उसकी लक्ष्मी इच्छा करती है, उसको बुद्धि ढूंढती है, कीर्त्ति उस की ओर देखती है, प्रीति उसका चुम्बन लेती है, नीरोगता उस की सदा सेवा करती है । पुण्यपङ्क्ति उसका आलिङ्गन करती है, सुन्दर मुक्तिरूप कन्या उसे वर लेती है ॥ ७६ ॥ आसन्ना गृहदासिका रतिरयं दातेति सोत्कण्ठया,
कीर्त्तिः स्निग्धतरा रमा परिचयं बुद्धिर्दधाति स्थितिम् । चर्द्धिः करगा सुमुक्तिललना स्यात्सादरा कामुकी, क्षेत्रे शुद्धधिया मुदा वपति यः महित्तबीजं निजम् ॥
जो मनुष्य उत्तम पात्ररूप क्षेत्र में अपने धनरूप बीज को हर्ष पूर्वक बोता है, उस दानी के पास रति--प्रीति बड़ी उत्कण्ठा से घर की दासी के समान सदा बनी रहती है । कीर्ति उससे स्नेह करती और लक्ष्मी उससे सम्बन्ध करती है। उसकी बुद्धि स्थिर रहती और चक्रवर्ती की ऋद्धि उसकी हथैली में आजाती है, तथा मुक्तिरूप स्त्री उसकी आदरपूर्वक इच्छा करती है ॥ ८० ॥
तप की महिमा
यत्प्रागर्जितकर्मभूधर पविर्यन्मारदावानलज्वाला जालजलं यदुत्कटतरा क्षाहीन्द्र मन्त्राक्षरम् ।
For Private And Personal Use Only