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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥२४९॥ जे भिक्खू उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं वा चारोदगं वा तिलोदगं वा तसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोचीरं वा अंबकंजियं वा सुद्धवियर्ड वा अहणाधोयं अणंबिलं अपरिणयं अवुक्कंतजीवं अविद्धत्थं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ।। जे भिक्खू अप्पणो आयरियत्ताए लक्खणाई वागरेइ वागरत वा साइज्जइ ॥२५॥ जे भिक्खू गाएज्ज वा हसेज्ज वा वाएज्ज वा णच्चेज्ज वा अभिणएज्ज वा हयहेसियं, हथिगुलगुलाइयं, उक्कट्ठसीहनाय वा करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥२५२॥ - जे भिक्खू भेरीसदाणि वा पडहसदाणि वा मुरयसदाणि वा मुइंगसहाणि वा नंदिसहाणि वा झल्लरिसदाणि वा वल्लरिसदाणि वा डमरुगसदाणि वा मद्दलसदाणि वा सदुयसदाणि वा पएससहाणि वा गोलंकिसदाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वितताणि सदाणि कण्णसोयवडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइज्जइ ॥२५३॥ जे भिक्खू तालसदाणि वा, कसतालसहाणि वा लित्तियसहाणि वा गोहियसदाणि वा मकरियसहाणि वा कच्छभीसहाणि वा महइसहाणि वा सणालियासदाणि वा वलियासहाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि घणाणि सहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइज्जइ ॥२५४॥ जे भिक्खू वीणासदाणि वा विवंचीसदाणि वा तुण्णसहाणि बव्वीसदाणि वा वीणाइयसदाणि वा तुंबवीणासहाणि वा संकोडयसदाणि वा रुरुयसहाणि वा ढंकुणसहाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराराणि तताणि सदाणि कण्णसोयवडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेत वा साइज्जइ ॥२५५॥ जे भिक्खू संखसदाणि वा वंससद्राणि वा वेणुसहाणि वा खरमुहीसहाणि वा परिलीसवाणि वा चेचासदाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि झुसिराणि सदाणि कण्णसोयवडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइज्जइ ॥२५६॥ जे भिक्खू वप्पाणि वा फलिहाणि जाव वा इहलोइएसु वा रूवेस परकोइएस वा रूवेसु जाव अज्झोववज्जतं वा साइज्जइ ।।२५७-२७०॥ तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्याइयं ॥२७॥ ॥ निसीहज्मयणे सत्तरसमो उद्देसो समत्तो ॥१७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020508
Book TitleNishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size15 MB
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