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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारस्थियस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंतं वा साइज्जइ ।।७८॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साईज्जइ ॥७९॥ जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंत वा साइज्जइ ॥८०-१०३॥ जे भिक्खू जायणावत्थं वा निमंतणावत्थं वा अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ । से य वत्थे चउण्डमण्णयरे सिया तं जहा-णिच्च निवसणिए १ मज्जणिए २ छणसविए ३ रायदुवारिए ४ ॥१०॥ जे भिक्खु विभूसावडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ ॥१०५॥ एवं तइयउद्देसगमओ जाव-जे भिक्खू गामाणुगाम दुइज्जमाणे विभूसावडियाए अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करतं वा साइज्जइ ॥१०६-१६०॥ जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा पडिग्गरं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धरेइ धरंतं वा साइज्जइ ॥१६१॥ जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा जाव पायपुंछणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धोवेइ धोवंतं वा साइज्जइ ।।१६२॥ तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्याइयं ॥१६३॥ ॥ णिसीहज्झयणे पणरसमो उद्देसो समत्तो ॥१५॥ ॥ षोडशोद्देशकः ॥ जे भिक्खू सागारियसेज्ज अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥१॥ जे भिक्खू सोदगं सेज्जं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥२॥ जे भिक्खू सागणियं सेज्जं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥३॥ जे भिक्खू सचित्तं उच्छं मुंजइ मुंजतं वा साइज्जइ ॥४॥ एवं पण्णरसमे उद्देसे अंबस्स जहा गमो सो चेत्र इहपि णेयव्वो ॥५-९॥ जे भिक्खू आरण्णगाणं वणवयाणं अडविजत्तासंपट्ठियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥१०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020508
Book TitleNishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size15 MB
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