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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरस्स वा थेरियाए वा अहत्थच्छिन्नस्स अपाय छिण्णस्स अनासाछिण्णस्स अकण्णछिष्णस्स अणोट्ट छिण्णस्स सक्कस देइ देतं वा साइज्जइ ॥६॥ जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा इत्थछिष्णस्स पायच्छिष्णरस नासाछिष्णस्स कष्णछिष्णस्स ओट्ठछिष्णस्स असक्रस न देइ न देता साइज्जइ ॥७॥ जे भिक्खू पडिग अणलं ' अथिरं अधुवं अधारणिज्जं धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू पडिग्गहं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं न धरेइ न धरेंतं वा साइज्जइ ॥९॥ जे भिक्खू वण्णमंत पडिग्गहं विवरणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ १० ॥ जे भिक्खू विवण्णं पग्गिदं वण्णमंतं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ११ ॥ जे भिक्खू 'नव मे पडिग्गहे लद्धे' ति कट्टु तेल्लेण वा घरण वा णवणीपण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्र्खेत वा भिलिंगतं वा साइज्जइ ॥ १२॥ 66 जे भिक्खू वर मे पडिग्गहे लद्धेत्ति कटु लोद्रेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वणेण वा उल्लोलेज्ज वा उधव्त्रट्टेज्ज वा उल्लोलतं वा उव्वहृतं वा साइज्जइ ॥ १३ ॥ जे भिक्खू णवए मे पडिग्गहे लद्वे-त्ति कट्टु सीओदगवियडेण वा उसिणोद्गवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा० ||१४|| जे भिखू णवए मे पडिम्गहे लदे कि बहुदेवसिएण तेल्लेण वा० || १५ || वहुदेवसिएण लोद्रेण वा० ॥ १६ ॥ बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा० ||१७|| जे भिक्खू सुब्भिगंधे पडिग्गहे लदे -त्ति कट्टु दुभिगंधे करे || १८ || जे भिक्खू दुब्भिगंधे पडिम्गहे लद्धे त्ति कटु सुन्भिगंधे करे ||१९|| जे भिक्खू सुभिगंधे पडिग्गहे लदे - ति कट्टु तेल्लेण वा० ||२०|| लोद्वेण बा० ||२१|| सीओदगवियडेण वा ० ||२२|| एवं बहुदेवसिएण तेल्लेण वा० ॥२३॥ बहुदेसिएण लोडेग वा० ||२४|| बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा० || २५ || जे भिक्खू दुभिगंधे पडिग्गहे लद्धे-त्ति कट्टु तेल्लेण वा० ||२६|| लोद्रेण वा० ||२७|| सीओदागवियडेण वा० ||२८|| एवम् बहुदेवसिएण तेल्लेण वा० ||२९|| बहु देवसिएण लोण वा० ॥ ३० ॥ बहुदेव सिएण सीओदगवियडेण वा० ॥ ३१॥ जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पया वेज्ज वा, आयातं वा पयावेत व साइज्जइ ||३२|| For Private and Personal Use Only
SR No.020508
Book TitleNishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size15 MB
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