________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir
६३
व्यवहारस्य विचारा:
गीयत्थो जायकप्पो अगीओ खलु भवे अजाओ उ । पणगं समत्तकप्पो तदृणगो होइ असमत्तो ॥ १६ ॥ मes वियारभूमी विहारभूमी य सुलभवित्तीय । सुलभा वसही य जहिं जहण्णतं वासखेत्तं तु ॥ ४० ॥ चिक्खल - पाण- थंडिल बसही-गोरस जणाउलो वेज्जो । ओसह-निचयाऽहिवई पासंडा भिक्ख सज्झाए ॥ ४१ ॥ त्रयोदश गुणा वर्षाक्षेत्रे | तरुणे वसहीपाले
कपट्टिसलिंगमाइ आउभया 1 उपसज्जति अकपिए दोखिमे अपने ॥ ६० ॥ अपि च साधौ दोषाः ।
अह न संथरंति ताहे आयरिओ हिंss तमि वाडए वसहि पलोती हिंड | परिमियं नाम इयरे साहू जावइयं उद्धडाउ ऊ आणिति तावइयं अज्झापूर डिंडित्ता आयरिओ खिष्पं संनियट्ट | वासावासे वीसुंति पिहपिहं ठिया असमत्तकपिया य ते 'अमणु'ति । न परोपर उवसंपन्ना नत्थि तेसिं उग्गहो समं जइ दोणि समन्तकपिया एज्ज तेसिं साहारणं खेतं ।
एगो एगस्स पाले आवस्सयं अहिजर, आवस्सगवायणायरिओ पुण आवस्सगपडिपुच्छास्स सगासे दसवेयालियं अहिजद, दसवेयालियवागणायरिओ हरइ । एवं जाव दिट्टिवाओ । एवं सुत्ते अत्थे वि एवं चेव, नवरं उवरिम अत्थायरियाणं छेयसुयअत्थायरिओ ers | इति वर्षाक्षेत्रे आभाव्यव्यवहारः । गाथाश्च भाष्यस्य यथावासासु अमगुण्णा असभत्ता जे ठिया भवे वीतुं । तेसिं न होइ खेत्तं हृ पुण समणुष्णा य करिति ॥ ९१ ॥ ता तेसि होइ खेत्त को उ पहू तेसि जो उ रायणिओ । लाभो पुण जो तत्था सो सव्वेसिं तु सामण्णो ॥ ९२ ॥ अह अह वीस वीसु ठियाओ असमत्तकपिया होज्जा । अण्णो समत्तकपी एजाही तस्स तं खेत्तं ॥ ९३ ॥
For Private And Personal Use Only