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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ५१ वृहत्कल्पस्य विचारा: जा खलु जहुत्तदासहि वजिया कारिया सयट्ठाए । परिकम्मविमुक्का सा वसही अपकिरिया उ ॥ ५९९ ॥ उउबद्धे मासी वासावासासु चत्तारि मासा । एवं दुगुणा दुगुण अपरिहरता जत्थ पुणा पंति सा उवङ्काणसेज्जा भवइ । यदुक्तंउउबजे दो मासे वासा अट्टमासे अवजिता एइ । अग्ने भणतिजत्थ वासावासं ठिया तीए दो वासारत्ते अण्णत्थ काउं जइ पइ तो उट्टाणा न भवइ । देविद-स द- राय - गहवाइ उग्गद्दों सागारिए य साहस्मि | पचविहमि परुचिप नायव्वो जो अहिं कमइ ॥ ६६९ ॥ अण्णाए वि सव्वंमि उग्गहे घरसामिणा । तावि सीमं छिंदति साहू तप्पियकारिणो ॥ ६७९ ॥ गीत्थाय विहारो बीओ गीयत्थनिस्सिओ भणिओ । पत्ता तइयविहारी नाणुण्णाओ जिणवरेहिं ॥ ६८८ ॥ आयारपकप्पधरा चउदसवी य जे य त मज्झा | तन्निस्सार विहारों सबालबुड्ढस्स गच्छस्स ॥ ६९३ ॥ पति वा दोसु वा जत्तिएहि वा कप्पेहि बेट्टउ सुह वायणं देह तेत्ति कप्पेडिं निलज्जा कीरइ । इति निषद्याविचारः । पते पीठिकायाः । नक्खत्ती खलु मासी सत्तावीसं भवंतऽहोरता । भागा य एकवीस सत्तट्टिकपण छेपणं ॥ ११२८ ॥ अणत्तीस चंदो बिसट्टि भागा य हुंति बत्तीस । कम्मो तीस दिवसो तीसा अद्धं च आहच्चो ॥ ११२९ ॥ अभिर्वाड एकतीसा चउवीस भागस्य च तिगहीणं । भावे मूलाइजुओ पगयं पुण कम्ममासेणं ॥ ११३० ॥ चूर्णिर्यथा- पत्थ कालमासेणं अहिगारी । तत्थ वि उउमासेण स एव कम्ममासी भण्णइ । एस सो मासां जो सपरिक्खेवंसि अबाहिरियंस कप्पs निग्गंथाण वा निमांधीण वा मासं वत्थए । इति मासविचारः । For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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