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रूपे प्रांतभागमा लखेल प्रशस्ति छ। तेना आधारे जणाय छे के१२ मी आपेल सदीभां जे पूज्य आचार्य श्री धर्मघोषसूरि भगवंत थया हता। तेओथी पासेथी पूज्य आचार्यश्री विमलसूरि महाराजाना विद्वान् शिष्य-रत्न पूज्य श्री चंद्रकीर्ति गणिवरश्रीए पोताना स्वाध्याय माटे आगमना पर्यायोनी नोंध करी हती, ते नांध केवी रीते हस्तलिखित थइ ते माटे हवे पछीना पेरेग्राफमां
ग्रंथलेखनकाल मादिजे समये ग्रंथकर्ता यया तेज समये पारवाडवंशना शेठ धनदेव तथा शेठाणी इन्दुमतिने त्यां यशोदेव नामना महान् पुण्यात्मानो जन्म थयो हतो तेमने सतीओमा गणना पामेली तेवी पतिव्रता आंबी अर्धांगना हती अने तेओने उद्धरण-आंबीग-वीरदेव नामना प्रण पुत्ररत्नो तथा सोली, लोली अने सोखी नामनी प्रण पुत्रीओ हती। आखुकुटुंब घणुज धार्मिक हतु । श्री जिनवचनना पाननी अने श्रुत उपासनानी घणीज लगनी हती। आथी तेओए घणाज ग्रंथो लखाव्या हता। प्रस्तुतग्रंथनी प्रशस्तिमा निर्मापिता' मामनो ‘ण्यंत' प्रयोग तेमनी श्रुतभक्तिनी तालावेलीनी साक्षी पूरे छ । श्री जिनशासनभक्त आ श्राद्धवये आ ग्रंथनी प्रत लखावी इती। अने तेना परथी वि० सं० १२१६ मां लहिया देवीप्रसादे मा प्रय ताडपत्र पर लख्या, तेना परथी सुश्रावक नगीनदास भाईए प्रेसकोपी करी हती।
ग्रंथनी उपयोगिता ___ आ 'निःशेषसिद्धांतविचारपर्याय' प्रथमां मोटा भागना छेदग्रंथनी गूढविचार अने गूढपदो खारांशता अने कृतिनीपण लगभग ९०० वर्षयी वधु प्राचीनता छे, अने वर्तमानकालना श्रुतधरोमां अग्रस्थानने शोभावनार मूर्तिमंत आगमस्वरूप पूज्य गच्छाधिपति आचार्यभगवंतीनी पुण्यदृष्टिथी परिपूतता आ त्रिवेणी
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