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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir निःशेषसिद्धान्तविचार-पर्याये एसो उ सयभंगा देसे भंगा इमो तत्थ ॥ १५९५ ॥ काउस्सग्गमकाउं भुजा भाऊण कुणइ वा पच्छा । सय काऊण व भुजइ तत्थ लहू तिन्नि उ विसिट्टा ॥ १५९॥ जावच्चिय कालगया ताहे विय दाण्णि तिणि वा दिवसे । गच्छेज संजइणं अणुसट्टि गणहरो दाउं ॥ १७५१ ॥ पडिणीय-मेच्छ सावय-गय-महिसा तेण साणमाईसु । आसन्ने उवस्सग्गे कप्पड़ गमण गणहरस्स ॥१७३४॥ संयतीवसतौ इत्यर्थः । पियधम्मा दढधम्मो मियवाई अप्पकाऊहल्लो य । अज्जं गिलाणियं खलु पडिजग्गइ एरिसो साहू ॥ १७५१ ॥ जेण पहेण पक्खियाइसु आगच्छन्ति, तम्मि पहे दंडाइ उवगरण न मुंचंति इतिशेषः । ( उ०४ सू०२४) पासित्ता भासित्ता सेोउं सरिऊण धावि जे भिक्खू । विष्फालित्ताण मुहं सवियारकह कह हसइ ॥ १८२३ ॥ पासवणुच्चारं वा जे भिक्खू वासिरेज अविहीए । सो आणा अणवत्थं मिच्छत्तविराहण पावे ॥ १८५६ ॥ पट्टीवंसो दा० इत्यादि गाथा, वंसगकडणुकं वण० इत्यादि गाथा । तम्हा सव्वाणुन्ना सबनिसेही य पवयणे नस्थि । आयव्वयं तुलेन्जा लाहाकंखि व्व वाणियओ ॥ २०६७ ॥ जो चेव य उवहिरिम गमा उ सा चेव हाइ भत्तपाणम्मि । भुजण वज्जमणुन्ने तिष्णि दिणे कुणइ पाहुण्ण ॥ २०९८ ॥ जत्थ संजईओ संजयाण किइकम्म करंति, तत्थ सवं उद्धट्टिया सुत्तावत्ताइ करति, न मुद्धाण (उ) ठिए रयहरणे पाडिति । केइ आयरिया भणति-उद्धट्टिया चेव रओहरणे सिरे पणमंति त चेव तेसिं मुद्धाणति । संयतीविचारः (२११७ गाथा चू०)। For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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