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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घटित होने पर ही उस शब्द का प्रयोग यथार्थ हो सकता है, और यही एवंभूत नय है । अतः श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने कहा है कि-"शब्दार्थ के अनुसार नाम हो, तो वह अर्थ विद्यमान है. यदि उससे विपरीत अर्थ हो तो, वह अविद्यमान है । इस कारण से एवं तनय विशेषरूप से शब्दार्थ में तत्पर है "एवं जह सद्दत्यो संतो भूत्रो तदन्नहाऽभूत्रो। तेणेवंभूतनो सद्दत्यपरो विसेसेणं ॥" -विशेषा०, २२५१ अभिप्राय यह है कि एवंभूतनय की दृष्टि से घट तभी 'घट' कहला सकता है, जब वह स्त्री के मस्तक पर रखा हुआ जलाहरणादि क्रिया कर रहा हो । जलाहरणादि क्रिया से रहित घर के कोने में रखे हुए घट को एवंभूत नय 'घट' मानने को तैयार नहीं है । इस नय के अनुसार किसी समय राज-चिन्हों से शोभित होने की योग्यता को धारण करना अथवा प्रजा की रक्षा के दायित्व को प्राप्त कर लेना ही 'राजा' या 'नृप' कहलाने के लिए पर्याप्त नहीं है, प्रत्युत राजा उसी समय 'राजा' कहला सकता है, जबकि वह वास्तव में राज-दण्ड को धारण करता हुआ सिंहासन पर For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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