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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "उज्जु रुजु सुयं नाणमुज्जुसुयस्स सोऽयमुज्जुसुनो। सुत्तयइ वा जमुज्जं वत्थु तेणुज्जुसुत्तोत्ति । पच्चुप्पन्न संपयमुप्पन्न जं च जस्स पत्तेयं । तं रिजुतयेव तस्सस्थि उ वक्कमन्नति जमसंतं ॥ -विशेषा०, २२२२,२२२३ इस प्रकार ऋजुसूत्र नय वस्तु की भूत और भविष्यत् पर्याय की उपेक्षा करके केवल वर्तमान पर्याय का ग्रहण करता है । पर्याय की स्थिति वर्तमान काल में ही होती है, भूत और भविष्यत् काल में द्रव्य रहता है। यद्यपि मनुष्य की कल्पना अतीत एवं भविष्य की सर्वथा उपेक्षा नहीं कर सकती, तथापि मानव की बुद्धि कभी-कभी तात्कालिक परिणाम की ओर झुक कर केवल वर्तमान को ही छूने लगती है और यह मानने लगती है कि जो वर्तमान में है, वही सत्य है, कार्य-साधक है; भूत और भविष्यत् से उसका कोई प्रयोजन नहीं रहता। इसका आशय यह नहीं कि वह भूत और भविष्यत् का निषेध करता है । केवल, प्रयोजन न होने के कारण उनकी ओर उदासीन दृष्टि रखता है । वह मानता है कि वस्तु की प्रत्येक अवस्था भिन्न है। इस क्षण की अवस्था इसी क्षण तक सीमित है । दूसरे क्षण की अवस्था दूसरे क्षण तक सीमित है । इस तरह ऋजुसूत्र क्षणभङ्गवाद में विश्वास करता है। [२७ AAAAAAAA For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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