SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) करके उसके स्थान में 'भी' का प्रयोग करने के लिए कहता है । 'नयवाद' की उपयोगिता यह जो आज परिवारों में लड़ाई-झगड़े हैं, सार्वजनिक जीवन में क्रूरता और कल्मष है, धार्मिक क्षेत्र में 'मैं - तू' का बोल बाला है, अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में तना तनी है, वह सब 'नयवाद' के दृष्टिकोण को न समझने के कारण ही है । दुनिया का यह एक रिवाज-सा बन गया है कि वह अपनी आँखों से अपनी ही कल्पना के अनुसार सब कुछ देखना चाहती है । समाज का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि सब जगह मेरी ही चले । समूचा समाज मेरे इशारे पर नाचे और जब यह नहीं होता, तो लोग आपस में एक-दूसरे के दोष निकालते हैं और टीका-टिप्पणी के रूप में एक-दूसरे पर छींटाकशी करते हैं । इससे 'मैं - तू' का वातावरण गरम हो जाता है । राजनीति के क्षेत्र को ही लीजिए। वहाँ संसार वादों के झमेले में पड़कर अपनी बात को खींच रहा है । कोई कहता है 'समाजवाद ही विश्व की समस्याओं को सुलझा सकता है।" दूसरा कहता है " साम्यवाद से ही विश्व में शान्ति स्थापित हो सकती है ।" तीसरा पुकार रहा है - "पूजीवाद की छत्रछाया में ही संसार सुख की सांस ले सकता है । "कोई किसी वाद से और किसी वाद से विश्व-शांति की रट लगा रहा है। इस खींचतान से ही ईर्ष्या, कलह, संघर्ष और द्वन्द्व राजनीतिक For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy