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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * मोक्षतत्त्व (७६) 000000000000 श्रसंज्ञी मार्गणा । इनमें से संज्ञी जोव मोक्ष जा सकते हैं, श्रसंज्ञी नहीं । (६) चारित्रमागंणा के पांच भेद हैं, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यातचारित्र । इनमें से यथाख्यात चारित्रका लाभ होने पर जीव मोच जाता है, अन्य चारित्र से नहीं । (७) सम्यक्त्वमार्गणा के पांच भेद हैं, श्रपशमिक सास्वादन, क्षायोपशमिक, वेदक और क्षायिक। इनमें से क्षायिक सम्यक्त्व का लाभ होने पर जीव मोक्ष जाता है, अन्य सम्यक्त्व से नहीं । (८) अनाहारमार्गणा के दो भेद हैं, अनाहारक और श्राहारक। इनमें से अनाहारक जीव को मोक्ष होता आहारक अर्थात् श्रहार करनेवाले को नहीं । (६) ज्ञानमार्गणा के पाँच भेद हैं, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान । इनमें से केवल ज्ञान होने पर मोक्ष होता है, अन्य ज्ञानसे नहीं । (१०) दर्शनमार्गणा के चार भेद हैं; चतुर्दर्शन, चतुर्दर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । इनमें से केवलदर्शन होनेपर मोक्ष होता है; अन्य दर्शनसे नहीं । For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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