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पापसत्र #
(४१)
३- हाथ, पैर, सिर श्रादि अवयव ठीक हों और
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पेट तथा छाटी होन हो तो, 'कुब्ज' ।
४- छाती और पेटका परिमाण ठीक हो और हाथ पैर सिर आदि छोटे हों, तो, 'वामन' । ५ - शरीर के सब अवयव हीन हों, तो, 'हुँड' ।
थावरसुहुम पज्ज', साहारणमथिरमसुभदुभगाणि ।
दुस्सरणाइज्जजसं.
थावरदसगं विवज्जथं ॥२०॥
"इस गाथा में पहले कहे हुये स्थावरदशक का वर्णन है। " स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अयशः कीर्ति ये पुरायतस्त्र में कहे हुये दशकसे विपरीत अर्थवाले हैं ॥ २० ॥
( १ ) जिस कर्म से स्थावर शरीर की प्राप्ति हो, उसे 'स्थावर' नामकर्म कहते हैं। स्थावर शरीखाले एकेन्द्रिय जीव, गरमी या सर्दीसे, चल फिर न सकने के कारण अपना बचाव नहीं कर सकते ।
(२) जिस कर्मसे श्रांखसे नहीं देखने योग्य शरीर मिले उसे 'सूक्ष्म' नामकर्म कहते हैं ।
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