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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पापसत्र # (४१) ३- हाथ, पैर, सिर श्रादि अवयव ठीक हों और Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पेट तथा छाटी होन हो तो, 'कुब्ज' । ४- छाती और पेटका परिमाण ठीक हो और हाथ पैर सिर आदि छोटे हों, तो, 'वामन' । ५ - शरीर के सब अवयव हीन हों, तो, 'हुँड' । थावरसुहुम पज्ज', साहारणमथिरमसुभदुभगाणि । दुस्सरणाइज्जजसं. थावरदसगं विवज्जथं ॥२०॥ "इस गाथा में पहले कहे हुये स्थावरदशक का वर्णन है। " स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अयशः कीर्ति ये पुरायतस्त्र में कहे हुये दशकसे विपरीत अर्थवाले हैं ॥ २० ॥ ( १ ) जिस कर्म से स्थावर शरीर की प्राप्ति हो, उसे 'स्थावर' नामकर्म कहते हैं। स्थावर शरीखाले एकेन्द्रिय जीव, गरमी या सर्दीसे, चल फिर न सकने के कारण अपना बचाव नहीं कर सकते । (२) जिस कर्मसे श्रांखसे नहीं देखने योग्य शरीर मिले उसे 'सूक्ष्म' नामकर्म कहते हैं । For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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