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* पापतत्त्व *
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(३३)
___(8) उपभोग्य चोजें मौजूद हैं, उपभोग करने की शक्ति भी है लेकिन उपभोग नहीं ले सके, उसका कारण 'उपभोगान्तराय' पापकर्म है। __ जो चीज़ एकबार भोगने में श्रावे वह भोग्य; जैसे---- पुष्प, फल, भोजन आदि । जो पदार्थ बारबार भोगने में आ उसे उपभोग्य कहते हैं, जैसे-स्त्री, वस्त्र, आभरण आदि।
(१०) रोगरहित युवावस्था रहते और सामर्थ्य रहते हुए भी अपनी शक्तिका विकास न कर सके, उसका कारण, 'वीर्यान्तरीय' पापकर्म है।
(११) आँख से पदार्थों का जो सामान्य ज्ञान होता है उसे 'चक्षुर्दर्शन' कहते हैं, उसका आवरण, 'चक्षुर्दर्शनावरणीय पापकर्म कहलाता है।
पदार्थ के सामान्य ज्ञान को दर्शन कहते हैं और विशेष ज्ञान को ज्ञान ।
(१२) कान, नाक, जीभ, त्वचा तथा मनके सम्बन्ध से शब्द, गन्ध, रस और स्पर्श का जो सामान्य ज्ञान होता है उसे 'अचक्षुर्दर्शन' कहते हैं, उसका आवरण, 'भचक्षुर्दर्शनावरणीय' पापकर्म कहलाता है।
(१३) इन्द्रियों की सहायता के बिना रूपी द्रव्यका जो
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