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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org *पुण्यतरत्र * ( २३ ) 0000 'स' नामकर्म कहते हैं। त्रस जीव वे हैं, जो धूप से व्याकुल होने पर छाया में और शीत से दुखो होने पर धूप में जा सकें । द्वीन्द्रियादि जीव त्रस कहलाते हैं। 1 Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( २ ) जिस कर्म से जीवका शरीर या शरोर-समुदाय देखने में श्रासके इतना स्थूल हो, उसे 'बादर' नामकर्म कहते हैं । (३) जिसके उदयसे जीव अपनी पर्याप्तियों से युक्त हो, उसे 'पर्याप्त' नामकर्म कहते हैं । (४) जिस कर्म से एक शरीर में एक ही जीव स्वामी रहे, उसे 'प्रत्येक' नामकर्म कहते हैं । (५) जिस कर्म से जीवके दांत, हड्डी आदि अवयव मजबूत हों, उसे 'स्थिर' नामकर्म कहते हैं। (६) जिस कर्मसे जीवकी नोमिके ऊपरका माग शुभ हो, उसे 'शुभ' नामकर्म कहते हैं। (७) जिस कर्म से जीव, सबका प्रियपात्र हो, उसे 'सौभाग्य' नामकर्म कहते हैं। (८) जिस कर्मसे जीक्का स्वर [ आवाज ] कोयल की तरह मधुर हो, उसे 'सुस्वर' नामकर्म कहते हैं । (६) जिस कर्म से जीव का वचन लोगों में आदरणीय हो, उसे 'आदेय' नामकर्म कहते हैं। For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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