________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
* अजीवतत्त्व manomerana.or-..--.-0000000000000000
प, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द ये सिर्फ पुद्गला. स्तिकाय में रहते हैं, धर्मास्तिकाय आदि में नहीं।
"पुद्गल का लक्षण सबंधयार-उज्जोत्र,
पभा-छाया-ऽऽतवे इय। वन्न गंध रसा फासा,
पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥ शब्द, अन्धकार, रत्नादिका उद्योत, चन्द्रादिकी प्रभो, छाया और सूर्यादिका प्रातप, ये पुद्गल हैं, अथवा जिस में वर्ण गन्ध, रस और स्पर्श हो, उसे पुद्गल समझना चाहिये ॥११॥
पूरण गलन, जिसका स्वभाव हो, उसे पुद्गल कहते हैं अथात् जो इकट होकर मिल जाते हैं और फिर जुदे जुदे हो जाते हैं, वे पुद्गल कहलाते हैं।
-
-
"अब दो गाथाओं से कालद्रव्य का स्वरूप कहते हैं।" एगा कोडी सतसट्टि,
लक्खा सतहत्तरी सहस्सा य ।
For Private And Personal