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(१६)
* नवतत्त्व *
9.90.
धर्मास्तिकाय, चलन स्वभाव वाला है अर्थात् जैसे मछली के चलने फिरने में जल सहायक है उसी तरह जोव और पुद्गल के सञ्चार में हिलने डुलने में-धर्मास्तिकाय महायक है। अधर्मास्तिकाय स्थिर स्वभाव वाला है अर्थात जैसे वृक्षादि की छाया पक्षियों को विश्रान्ति लेने में-ठहरने में-कारण है उपो तरह जोब और पुद्गन को स्थिर रखने में अधर्मास्तिकाय कारण है ॥ ६ ॥
अवगाहो अागासं,
पुग्गल जीवाण पुग्गला चउहा। खंधा देस पएसा,
यव्या॥१०॥ अवकाश देना आकाशास्तिकाय का स्वभाव है । जैसे दूध, शकर को अरकाश देता है उसी तरह अाकाशास्तिकाय, जीव और पुद्गलों को अवकाश देता है। पुद्गल के चार भेद ये हैं; 'स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु ॥१०॥ __ आकाश के दो भेद हैं, लोकाकाश और अलोकाकाश ।
जितने आकाश देश में जोव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय और काल व्याप्त है, वह लोककाश कहलाता है, और उस से जुदा अलोकाकाश ।
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