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(४)
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अंक
१
15
नाम
पुण्य
पाप
आश्रव
संवर
निर्जरा
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रुपिभेद | रुपिभेद
जीव
१४
अजीव ४
४२
८२
४२
बंध
मोक्ष
ॐ नवतस्त्र *
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०
१०
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५७
१२
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यज्ञेयादि
ज्ञेय
ज्ञेय
उपादेय
य
हेय
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उपादेय
उपादेय
हेय
उपादेय
" इस गाथा में छः प्रकार से जीव का विवेचन है ।"
एगविह दुविह तिविहा, चव्विा पंच छव्विहा जीवा ।
चेयण तस इयरेहिं,
वेय गइ करण काहिं ॥ ३ ॥
चेतन रूप से जीव एक तरह का है: त्रस और स्थावर रूप से दो तरह का स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुन्सकवेद रूप से तीन करह का देवगति, मनुष्यगति, तिर्यञ्चगति और नरकगति रूप से चार तरह का एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय रूप से पांच तरह का पृथ्वीकाय,