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ही समय में अपना प्रतिभा सम्पन्नता के कारण बहुत ही कुशल ओहरी बन गये। और आप जवाहरात का पार करने लगे। मोहरियों में आप प्रथम श्रेणी के जौहरी समने जाने लगे। आपकी जवाहरात की परख की प्रशंसा और योग्यता यहां तक थी कि आपने नेत्रों से पट्टी बाँध देने पर भी शाप हाथ से
टोल कर ही बतला देते थे कि यह अमुक नगीना है। आपके जिसे यह कम प्रशंसा की बात नहीं थी। भापके करीब १०० शागिर्द थे ६७ वर्ष की अवस्था में आप स्वर्गवासी हुए।
आपके चार पुत्र थे। सब से बड़े गम्भीर चम्ममी, दूसरे मनसारामजी, सीसरे मोहनलालजी, और चौथे केसरीचन्दजी । आपके एक कन्या भी हुई थी। वह विवाह के बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। बाहों भाइयों में से सब से प्रथल गाभारतम् जी. स्वर्गवासी हुए ___ मनसासरामजी से विवाह नहीं किया। मापका स्वभाव बहुत ही अच्छा था। आप बड़े मिलनसार उदार व्यक्ति थे । अवाहपा के व्यापार में आप भी अपने पिता वा० नोनकरनजी के समान बहुत कुशल जौहरी थे । जवाहरात के ८४ संग (पत्थर) मशहूर हैं उनमें से आपने ८० संग एकत्र किये थे इसने संगो का एकत्र होना बहुत ही कठिन काम है, श्वापको लगा रहता था कि सभी संग हमारे यहां होवे इन संगो के एकत्र करने में बाबू दयालचन्दजी चौरडीया जोहरी श्रागरा निवासी ने भी जिन्होंने उपरोक्त बाबू साहिब से जवाहरात का काम सीखा, बहुत कुछ प्रयत्न किया था आप १७ वर्ष कलकले भी रहे थे, शेष जीवन बनारस में व्यतीत कर महावदी १५ संवत १६७३ में स्वर्गवासी हुये।
बा० मोहनलालजी का विवाह श्रागरा निवासी लाल अजमलजी लोढ़ा की पुत्री श्रीमती अंगूरी बीपी से हुआ था उस रमामय पापको अवस्था १२ वर्ष की थी । आप भी बहूत कुशल
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