________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir नंदी टी. * पंचविधः प्रचप्तस्तद्यथा परिकर्मसूत्राधि पूर्वगतं अनुयोगचूलिका तव परिकर्मनाम योग्यता पादनं तहत शास्त्रमपि परिकम किमुक्तं भवति सूवाणि * पूर्वगतानुयोगस्वार्थ ग्रहणयोग्यता संपादनसमर्थानि परिकर्माणि वथा गणितशास्त्र संकलनादीन्यायानि गोडगपरिकर्माधिशेष गणितमत्वार्थ ग्रहणे योग्यता भवति नान्यथा तथा स्टहीत विवचित परिकर्मसूबार्थः सन् शेषसूत्रादिरूप दृष्टिवाद श्रुतग्रहगावोग्यो भवति नेतरवा तथा चोनों परि N कर्मेति योग्यताकरणं जहगणियमा सोलमपरिकम्मातगायिमुत्तच्छोसे सगणिया जोगो भवद एवं गरित परिकम्मसत्तच्छोसे समुत्तादिविवायरम तंजहा परिकम्मसुत्ताइश्वगएश्वणुयोगेठचूलिया५ सेकिंतंपरिकम्मे परिकम्म सत्तविहे पमत्त तंजहा सिद्धसेणियाप रिकम्मरमणुस्मसेणियापरिकम्मर पुट्ठसेणियापरिकम्म३ उगाढसेणिया परिकमेटेउवसंपज्जणसेणियापरिकम्प प्रविष्णन % पदार्थनोक 60 रुपमा स्वथप देखाडवे करी कह्या नि० हेतु दृष्टांते करी स० सर्व भावते पकल पदार्थ सकल नयादिकना भाव नेहनी 50 पापणा भाषा पूर्वने विषे पा. सामान्य पणे कहेके से ते पूर्व संक्षेप थकीप पांच तंपरिका 110 सुबतेर पु० पुर्वगतते मध्ये १४पूर्वग छेडू प. अनुयोग नेहनार भेदतीर्थंकरनी उत्पत्तिनु अधिकार अने भरत चक्रवर्ति तोमोक्षगयो ते परिवारनी पाटानुपाटनी विध ते भरतना 14 लाख पाटतोमोक्षगयाति वारे * पछी एक पाट राज्य छोडीने मोक्षगयो इत्यादिक वे भेद कहिवाछे चू० चूलिकागत 5 सि० परि कर्म शब्दते गणना विशेषे सिद्ध श्रेणि नो परिकर्म गणिना१ म० मनुष्यनी वेणिनीमिण तीनायथा योग्य परि कर्मर पु० पुष्टवेणि कनौगणितीना परिकर्म३ ते घूयानी यथायोग्यपरिक ऊ गाहणानी श्रेणिनागातीना परिकर्मठ यथायोग्य परिकम उ० उपसंपावन श्रेणिना परिकर्म ते अंगीकारना यथायोग्य परिकर्मा 4 वि० विष्पजाण श्रेणि नागा HWKKHEKWK KHEKKKKKHA चव 袁紫米米浆精彩柴柴業器茶养养都养業养米米業職業 For Private and Personal Use Only