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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी. ब्राह्मादिलिपिभेदतोऽनेक प्रकारंतवनागरी लिपिमधिपत्य किञ्चित्पदश्यतेमध्ये स्काटितचुल्ली निवेशसहयोरेखा सन्निवेशेणकरोचकीभूतञ्चपुच्छसंन्निवेश सदृशोढकार इत्यादि मेत्तमित्यादितदेतदसंज्ञाक्षर अकिंतत्व्यंजनाक्षरं प्राचार्य आरव्यंजनाभिज्ञाप:तथादिव्यचतेऽनेनार्थः प्रदीपनेवघटइतिश्यंजनं भाष्य त्तइएवंलिवौए अट्ठारसविहे लक्षणविहाणेपन्नत्ते तंजहावभौजमणालिया दासपुरिया उत्तरक्खराधक्खरवुद्धियापो क्वरसरियापहराड्या मणवद्यावेणुयाइयाणणड्या अंकलिवोगणियालिवी श्रायंसलिवौगंधयलिवीकामिलौमाहे सरोपोलिंदी सेतंसन्नवर सेकिंतवंजणक्खरंवंजणक्वरं अक्सरस्मवंजणामिलाबो बंजणक्खरं तंदौहरहांपुश्रुतंज भाषा स्थानमूत्र व आकारादिक उचरे लघुदीर्घादिक तेदेवे सुभाव श्रुतशब्दसांभलो जाणे एसंतोषना शब्दछे इत्यादिक 2 ल निरंतर अक्षर ऊचरे तेवर लवि तेमध्ये एकेन्द्रीतो अध्यक्तगाढाछे तेवद्री तेहप्रगटछे इमजावपंचेन्ट्रीने प्रगट अक्षरलब्धि 3 सइम जेनिरंतरअक्षरअचरेतेअक्षरलब्धि तेमथ एकेन्द्री ने अव्यक्त गोठोछ बेन्द्रीने तेथको प्रगट इम जावपंचेन्द्रीने प्रगट अक्षरलब्धि उपजे तेइहां एकेन्द्रीने उपदेश सांभलवो नथीपिणतेहने कर्मने क्षयोपसमे करीने अक्षरलब्धि उपजिने अव्यक्तपणे जिम आधारादिकनी संज्ञा अंगीकार कर भयो एहते एकेन्द्रीयादिकने पणि अक्षरसुयं कहतो दोषनथी इम जाणवो तेभी वली 14 संस्थानक जाणवा भणी शिष्यप्रति गुरुकहेछ पख. तेएमजे अक्षरनी सधस्थान ग०गतिजाणवी से तेएसम्या अचरश्रुतम्या * * नकहीये से तेकुण २०व्यंजन अक्षर बयाकारादिक उचरवो अक्षरते व व्यंजण अक्षरकहीयेअक्षरनो आकारादिक उचरे लघुदीर्घादिकछे ये दूरभाव श्रुतर५ ते शब्द सांगलीने जाणए रखनो शब्दके इत्यादिक से ते एवं * व्यंजण अक्षरकहीयेर से तेअथदिवे कि तेकुथल निरंतर अक्षरनोउचरवो 業亲業能带業兼紫紫装業兼差兼叢叢叢叢叢業業職業 職業鑑茶器茶器紫装需諾器器兼紫紫器器器器茶器黑茶 48 For Private and Personal Use Only
SR No.020495
Book TitleNandi Sutra Tika
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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