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( नाडीप्रकाश १२) नाडी क्षीण चलती है ॥ ६ ॥
प्रन्यच वाता धिके भवेवाडी प्रव्य तामध्य मा तले ॥ पित्ते व्यक्तातु तर्जन्या तृति
यां गुलिगा भवेत् ॥ ३०॥ टीका- वात की अधिकता से नाड़ी मध्यमा के नीचे विशेष चलती है पित्त को अधिकता से तर्जनी के नीचे और कफ | की अधिक तासे अनामिका के नीचे प्रगट होती है।
तर्जनी मध्यमा मध्ये वात पित्ताधि के स्फुटा ॥ अनामिकाया तजव्य
तापित्त कफे भवेत् ॥ ३९ ॥ . टीका- वात और पित्त इन दोनों दोषों के मिलने से ना डी तर्जनी और मध्यम के नीचे में चलती है और पित कफ के मिलने से अनामिका और तर्जनी के नीचे फडती है॥ ३९ ॥
मध्यमा इनामिका मध्य स्फुटा वात कफाधिके । अंगुली वितय ऽपि
स्या त्पव्यक्ता सन्ति पाततः॥ ३२॥ टीका-तथा वात कफ प्रवल होनेसे मध्यमा पोर अनामि का के मध्य भाग में नाडी चलती है और सन्नि पात में तीनों पालियों के नीचे नाडी समान चलती है ॥ ३२ ॥
मान्यच
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