________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गंग्लंडीयमतानुसारनाडीपरीक्षा परोक्षा न करोति सा। करोति या साऽपरोक्षाङ्गलिस्पर्शञ्च पश्यतः॥२॥ अर्थ-इंग्लड अर्थात् अंगरेजीमें नाडीको पल्स Tulse कहतेहै वह दो प्रकारकी है एक परोक्ष और दूसरी अपरोक्ष तहां जो नाडी देखनेवालेकी ऊंगलियोंका स्पर्श न करे वह परोक्ष कहाती है और जो उंगलियोंका स्पर्श करे वो अपरोक्ष अर्थात् प्रत्यक्ष नाडी कहाती है।
उत्थानापेक्षया पुंस आसने तदपेक्षया । शयने नाडीका वेगो मन्दी भवति नानृतम् ॥ ३ ॥ सायंतनाद्धि समयाप्रातःकालेऽधिका गतः । वेगसंख्या भवेनिद्राकाले ह्रासं च गच्छति ॥४॥ अर्थ-खडे होनेकी अपेक्षा ( वनिसवत ) वैठनमें और बैठनेकी अपेक्षा सोनेमें नाडीकी गति घटजातीहै । उसीप्रकार सायंकालकी अपेक्षा प्रातःकालमें नाडीकी गति बढजाती है । और निद्रामें नाडीकी संख्या घटजाती है ॥ ४ ॥
भोजनस्याथ समये वेगसंख्या विवर्द्धते । अहिफेनसुरादी नामुष्णानां यदि भोजनम् ॥५॥ बुभुक्षावसरे नाडी गतेवेंगो ह्रसत्यलम् । एषा नाडी गतेदेंगचर्या सामान्यतो मता ॥६॥
अर्थ-यदि अफीम मद्य आदि गरमवस्तु खायतो उस गरम भोजनके कारण नाडीकी संख्या बढजाती है, और अत्यंत शीतलवस्तु खानेसैं नाडीकी संख्या न्यून होजाती है, यह अर्थाशमैं जाना जाताहै । उसीप्रकार भोजनके समय नाडीका वेग मंद होजाताहै, यह नाडीकी सामान्य गति संख्या कही है ।
नाडीकी व्यवस्था जाननेके लिये वैद्यको प्रथम इतनी वस्तुओंका जानना अति आवश्यकहै । जैसे प्रथम नाडी देखनेकी विधि दूसरे आरोग्यावस्थाकी नाडी तीसरे रोगावस्थाकी नाडी और चतुर्थ नाडी देखनेका यंत्र ।
१ नाडीदेखनेकी विधि-नाडी देखनेके जो नियम वैद्योंने निश्चितकर रखेहै, यदि उनके अनुसार न देखी जावेतो हम जानतेहै कि नाडीका यथार्थज्ञान होना अति असंभवहै । अतएव अब उन नियमोंको वर्णन करतेहै ।
प्रथम-वैद्य या रोगी कहीसे चलकर आयाहो तो उचितहै कि थोडीदेर विश्राम
For Private and Personal Use Only