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आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा
मुहुः प्रकम्पते तद्वत्सार्द्धद्वयपले शतम् ॥ ३८ ॥
अर्थ - फिर दो वर्ष से उपरांत तीन वर्षतकके बालककी नाडी २ || पलमें १०० वार वारंवार तडफती है ॥ ३८ ॥
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ततस्त्वासप्तमाद्वर्षान्नवतिः स्यात्प्रवेपनम् । धमन्यास्तन्मिते काले प्रत्यक्षादनुभूयते ॥ ३९ ॥
अर्थ - फिर तीन वर्षसैं सात वर्षतकके बालककी नाडी २ || पलमें ९० वार वारंवार चलती है ॥ ३९ ॥
ततश्चतुर्दशं तावत्पञ्चाशीतिः प्रवेपनम् । त्रिंशद्वर्षमभिव्याप्य ततोऽशीतिः प्रकीर्त्तितम् । शतार्द्धवत्सरं व्याप्य कम्पनं पञ्चसप्ततिः । ततोऽशीतौ प्रकथितं पष्टिवारं प्रवेपनम् ॥ ४० ॥
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अर्थ - फिर सात वर्षसैं लेकर चौदह वर्ष की अवस्थातक इस प्राणीकी नाडी २॥ पलमें ८५ वार तडफती है । और चौदह वर्षकी अवस्थासें लेकर ३० वर्षकी अवस्थापर्यंत ढाई पलमें ८० वार तडफती है । तीस वर्षके उपरांत पंचास वर्ष पर्यंत ७५ वार कंपन होती है । और पंचास वर्षसें लेकर अस्सी वर्षकी अवस्थातक इस प्राणीको नाडी २ || पलमें ६० वार कंप होती है ॥ ४० ॥
( ४३ )
वयोऽवस्थाक्रमेणैवं क्षीयन्ते गतयो मुहुः ।
सार्द्धद्रयपले काले नाडीनामुत्तरोत्तरम् ॥ ४१ ॥
अर्थ - फिर जैसे जैसे अवस्था क्षीण होती जाती है उसी प्रकार नाडीका गमनभी २ ॥ पलमें क्षीण होता जाता है ॥ ४१ ॥
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एवं बहुविधाद्रोगात्तत्तलिङ्गानुबोधनी ।
नाडीनां च गतिस्तद्वद्भवेत्कालात्पृथक् पृथक् ॥ ४२ ॥
अर्थ - इसप्रकार अनेकविध रोगोंसें उन्ही लिङ्गोकी बोधन करनेवाली नाडियोंकी गति पृथक पृथक कालमें पृथक पृथक होती है ॥ ४२ ॥
हृदयस्य बृहद्भागः संकोचं प्राप्यते यदि । प्रसारयेत्तदा नाडी वायुना रक्तवाहिनी ॥
४३ ॥ अर्थ-जिस समय हृदयका बृहद्भाग संकुचित होता है और खुलता है उससमय रक्तवाहिनी नाडियों की गति पवनके वेगस प्रस्पन्दन होती है ॥ ४३ ॥