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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा ( ४१ ) भगंदर तथा नाडीव्रण रोगमं नाडीकी गति वातनाडीके तुल्य और अत्यंत उष्ण होती है ॥ २७ ॥ वान्तादिज्ञानम् । वान्तस्य शल्याभिहतस्य जन्तोर्वेगावरोधाकुलितस्य भूयः । गतिं विधत्ते धमनी गजेन्द्रमरालमानेव कफोल्वणेन ॥ स्त्रीरोगादिकमपि रक्तादिज्ञानक्रमेण ज्ञातव्यम् ॥ २८ ॥ अर्थ-मित (जिसने रद्द करीहो ) शल्याभिहत ( जिसके किसी प्रकारका बाण आदि शल्य लगाहो ) और वेगरोधी ( जिसने मल मूत्रको धारण कर रक्खाहो ) ऐसे प्राणियों की नाडी तथा कफोल्वणा नाडी हाथी और हंसादिक - की गति के समान चलती है । इसीप्रकार रक्तादि ज्ञानकर के अनुक्त जो स्त्रीके रोग प्रदरादिक उनकोभी वैद्य अपनी बुद्धि मानी से जानलेवे यह नाडी परीक्षा शंकरसेनके मतानुसार लिखिहै ॥ २८ ॥ नाडी स्पन्दनसंख्या | षष्टास्पन्दास्तु मात्राभिः पदपञ्चाशद्भवन्ति हि । शिशोः सद्यः प्रसूतस्य पञ्चाशत्तदनन्तरम् ॥ २९ ॥ चत्वारिंशत्ततः स्पन्दाःपत्रिंशद्यौवने ततः । प्रौढस्यैकोनत्रिंशत्स्युवर्धकेऽ ष्टौ च विंशतिः ॥ ३० ॥ अर्थ - अब नाडीके फड़कनेकी संख्या कहते है, जैसे कि ६० दीर्घ अक्षर उचारण करने में जितना काल लगता है उतने समय में अर्थात् १ पलमें तत्काल हुए बालकी नाडीकी स्पंदनसंख्या ५६ वार होती है । इसके उपरान्त अवस्था बढने - के अनुसार १० तथा ४० वार होती है । यौवन अवस्था अर्थात् जवानीमें ३६ वार होती है | और प्रौढ अवस्थामे २९ वार, और बुढापेमें २८ वार, एकपलमें नाडी फडकती है ॥ २९ ॥ ३० ॥ पुंसोऽतिस्थविरस्य स्युरेकत्रिंशदतः परम् । योषितां पुरुषाणांच स्पन्दास्तुल्याः प्रकीर्त्तिताः ॥ ३१ ॥ प्रौढानां रमणीनांत द्रयधिकाः सम्मता बुधैः ॥ ३२ ॥ अर्थ - अति वृद्धहोनेसें नाडीकी संख्या फिर बढनें लगती है अर्थात् एकपलमें ३१ वार तड़फती है यह अवस्थाभेद करके संपूर्ण स्पन्दन संख्या लिखि गई है । ६ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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