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आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा निस्तुषयव एकस्तत्प्रमाणाकुलं स्यात् तदुभयमितसद्मन्येव नाडीप्रचारः॥ न भवति यदि तस्मिन् गेहिनी गेहमध्ये
कथमिह गृहमेधी तत्र जीवस्तदा स्यात् ॥५६॥ अर्थ-छिलका रहित एक यवके प्रमाण इस जगे अंगुल माना है । ऐसें दो अंगुल प्रमाण स्थानमें नाडी रहती है यदि देहरूप घरमें नाडीरूप स्त्री न होवे तो जीवरूप जो गृहस्थी है सो क्याकरे, अर्थात् यावत्काल देहमें नाडी रहतीहै तबतक जीवहै विना स्त्रीके घरमें रहना निंदितहै “धिग्गृहं गृहिणीं विन " तात्पर्य यहहैकी जीव पुरुष, नाडी स्त्री अन्योन्यएकके विना दूसरा नहीं रहसकता ॥५६॥
परीक्षणीय। वातं पित्तं कर्फ द्वन्द्वं सन्निपातं तथैव च ।
साध्यासाध्यविवेकञ्च सर्व नाडी प्रकाशयेत् ॥१७॥ अर्थ-वात पित्त कफ द्वंद्वज दोष और सन्निपात एवं साध्यासाध्य (चकारसैं कष्टसाध्य ) इनकी संपूर्ण विवेचनाको नाडी प्रकाशित करती है ॥१७॥
इति श्रीमाथुरकृष्णलालसूनुना दत्तरामेण सङ्कलिते नाडीदर्पणे प्रथमावलोकः ।
___ नाडीज्ञानसमय । प्रातः कृतसमाचारः कृताचारपरिग्रहम् ।
सुखासीनः सुखासीनं परीक्षार्थमुपाचरेत् ॥१॥ अर्थ-अब नाडी देखनेका समय कहते है कि चिकित्सक प्रातःकालमें प्रातःकृत्यसमाप्तिके अनंतर नाडीपरीक्षार्थ रोगीके समीप प्राप्तहो रोगीके प्रातःकृत्य समाप्तिके पश्चात् उसको सुखपूर्वक बैठाकर इसीप्रकार स्वयं आप सुखपूर्वक बैठकर यथाविधान नाडी परीक्षा करे । इसजगे प्रातःकालका तो उपलक्षण मात्रहै किंतु मध्यान्ह और सायंकालमेंभी नाडीपरीक्षा करे जैसै लिखाहै " मध्यान्हे चोष्णतान्विता" इत्यादि ॥ १॥
निषिद्धकाल । सद्यानातस्य भुक्तस्य क्षुत्तृष्णातपसेविनः। व्यायामाकान्त
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