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८६ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ ____ ज्यो० ८० पृ० ११३ से ११५ तक " दो ज्योतिषियों की सच्ची कथा ,, शीर्षक मनगढन्त कथा लिखी है। मेरे विचार से ये कोई पढ़े लिखे साढ़े वाईस नाम मात्र के ज्योतिषी होंगे क्योंकि आपने भी तो पुस्तक के टाइटिल पेज में अपने नाम के साथ ज्योतिषी नाम को दुम लगाई है ॥ ___ पृ. ११६ से ११७ तक साठी के चांवना काढ़ा आदि के माथ साथ कार्तवीर्य के स्तात्र गंगाजल हरिवंश के शपथ खानेवालों को दिल्लगी उठाई है। आप फ़रमाते हैं कि अब तो इन गीदड़ भवकियों में कोई नहीं पाता । धन्य हो मनातनधर्म इसी का नाम है कि गंगाजल हरिवंश तक की मरम्मत करडाली ॥
पृ० ११८ तथा ११९ में कौड़ी फैश कर जिस प्रकार पूरी तथा अधरी कौड़ियों का बोध होता है। उसी प्रकार रमल तथा पंचपक्षी प्रश्न मापने वताई हैं । ठोफ है “ मति अनरूप कथा मैं भाषी ,, एक देहाती किमान की याहावत याद आई है कि तार ( टेलिग्राफ ) को देख कर कोई किसान प्र. पने घर आया, और अपने मित्रों से कहने लगा कि मरे भ. य्या ! हम हूं अपने घर तार बनाई।
कल बोला कि कैसे बनाई ? ॥
हीरा-दुई खम्भा लावो एक पूरब धांइ गाढ़ी एक पश्चिम धाइ वामें सूत वांध देउ खरी तार बा जायगो ॥
पाठक ! जिन शक्ति के बल से तार चलता है । माइन्स न जानने के कारगा ये लोग उघ बात को नहीं जानते थे। इसी प्रकार हमारे जोशी जी भी रमन के पांसे किम २ धातुओं से और किस प्रकार कसी विधि के साथ और पाचन. नाये जाते हैं। उप में क्या शक्ति विद्यमान है इस बात श्रो कुछ भी न जानने के कारण किमान की भांति कौड़ी में दौड़े हैं। आनेक रम्मा ग रगल के द्वारा प्रश्न तथा अनेक गुप्त बातें प्रश्न से बता देते हैं बार कौड़ियों से बनावें ॥
( ज्यो० च० पृ० १९० ५० १३)-१९ वर्ष में सूर्य और पृथ्वी
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