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आप लोग पक्षपात को छोड़कर ध्यान देंगे तो मूर्तिपूजा से कदाचित् भी दूर नहीं होसक्ते । भला एक बात मैं आपसे और पूछता हूं कि जिस स्थान में स्त्री की मूर्ति हो ब्रह्मचारी साधु वहां रहें वा न रहें !
द्वंदिया-कदाचित् भी वहां न रहें, क्योंकि जैनसूत्रों में लिखा है कि जिस स्थान पर स्त्री की मूर्ति हो वहां पर साधु न ठहरें इस बात को हम लोग भी मानते हैं ।
मन्त्री-अब आप तनक ध्यान तो दें कि सूत्रों में निषेध क्यों लिखा है ॥ "विना प्रयोजनं मन्दोऽपि न प्रवर्तते”
अर्थात् मूर्ख भी बिना प्रयोजन कोई काम नहीं करतो तो फिर सूत्रों में तो सर्वज्ञों का ज्ञान है क्यों निषेध किया है ?
द्वंदिया-सूत्रों में इसलिये निषेध किया है कि वार२ स्त्री की मूर्ति की ओर देखने से बुरे भाव उत्पन्न होते हैं । ।
मन्त्री-तो फिर क्या वीतराग परमात्मा की मूर्ति देखने से शुद्धभाव नहीं उत्पन्न होंगे ? क्यों नहीं अवश्य ही उत्पन्न होंगे ? इसलिये ही सूत्रों में निषेध किया है, कि जिस दीवार पर स्त्री की मूर्ति हो साधु वा ब्रह्मचारी उसको न देखे । जैसे सूर्य को देखकर अपनी दृष्टि पीछे हटा ली जाती है. इसी प्रकार ही मुनि अपनी दृष्टि पीछे बँचले, क्योंकि दीवार पर स्त्री की मूर्ति को देखकर साक्षात् उस स्त्री का स्मरण होता है जिस की वह मूर्ति है।
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