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( ८ ) इंढिया-हां साहिब, उनके तो सैंकड़ों ही चि. मिल सक्ते हैं परन्तु हम लोक उनके केवल दर्शन ही करते हैं फल फूलादिक चढ़ाकर कच्चे पानी से स्नान कराकर हिंसा तो नहीं करते ॥
मन्त्री-अच्छा जी यदि आप लोक हिंसा नहीं करते तो आपके गुरु करते होंगे ॥ ढूंढिया-वह कैसे ?
मन्त्री-जिस समय चित्र लिया जाता है आप नहीं जानते कि कच्चे पानी से धोना पड़ता है जिस से असंख्य जीवों का नाश होता है आपके गुरू जान बूझकर चित्र खिचवाते हैं। तो वे स्वयं जानकर ही हिंसा करवाते हैं इसलिए आपके गुरु हिंसा से पृथक नहीं होसक्ते । और हिंसा समझ कर ईश्वर परमात्मा की मूर्ति की पूजा से हटजाना आपकी बड़ी भारी मूर्खता है चित्र खिचवान से मूर्ति का स्वीकार करना प्रसक्ष प्रतीत होता है।
बड़े शोक की बात है कि आप लोक ईश्वर परमात्मा की मूत्तिएं नहीं बनवाते और नाही उनके सन्मुख सिर नमाते हो किन्तु गुरु जी की मूर्ति के सन्मुख मस्तक झुकाते हो इन बातों से आपके गुरुओं में अभिमान भी पाया जाता है। जो कि अपने चित्र खिचवाकर"उनके सन्मुख जब आपलोक सिर झुकाते है" तो आपको मना नहीं करते और मूर्तिपूजा नहीं बतलाते क्या ईश्वर के साथ ही शत्रुता है ? और क्या वे तीर्थङ्कर महाराज से जो कि जगद्गुरु कहलाते हैं उन से भी बड़े हैं ? यदि
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