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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ क्यों न मानी जाय । वाह वा ! सच पूछो तो हिपटीसाहब को खण्डन करना नहीं पाता । आये तो खण्डन करने, पर कसम खा कर वात पक्की कर गये आप का पक्ष निर्मूल हो कर गिर गया ॥ मागे पृ० १० में आप लिखते हैं कि यह कहीं नहीं लिखा गया कि जो नाहीवेध षडाष्टक में विवाह करै वह इतने समय के भीतर में मर जाय इत्यादि । (समीक्षा) पहिले श्राप यह लिखिये कि ज्योतिष के कौन २ ग्रन्थ आपने पढ़े हैं किसी अच्छे पगिडतः के शिष्य हो कर कुछ काल अध्ययन करने से यह हाल जाना जायगा पाठक महाशय ! यहां से १५ पंक्ति तक इधर उधर की कुछ बातें लिखके राजनैतिक विषय में दौड़ मचाई है। प्राप लि. खते हैं ८०० सौ वर्ष मुसलमानों का राज्य रहा और हम दवे रहे फिर यही साहस हुआ कि लार्डकर्जन के विपरीत अनुमति प्रकाश कियो । ( ममीक्षा) डिपटी साहव ! राजनैतिक ( पो. लीटिकल ) आन्दोलन में आप की राय शुभ नहीं ॥ ( ज्यो० च० पृ० १२ पं० १०) श्राप लिखते हैं कि अब बड़ी घोर आपत्ति का ममय ना पहुंचा है, बहुतरे लोगों में तो लड़की का व्याह होना कठिन हो गया है लड़के ही नहीं निलते साम्य तो किनारे रहा, पाप ही ज्योतिष का नाश हुआ। लडकियों का बलिदान हो रहा है। पर आप उन के प्रांस नहीं पोंछ सकते ॥ (समीक्षा)-नाप का कथन सत्य है कारण इम का यह है कि प्रथम तो धन नहीं रहा बन्दा मां गांग कर कई ब्राह्मण कन्याओं का विवाह कर रहे हैं (२) और सहस्रों नव युवक प्रतिसप्ताह प्लेग के शिकार बन रहे हैं। देश में हाहाकार मचा हुवा है। अनाचार इतना फैला है कि भदयाभन्य, मद्य, विस्कुट अण्डे, मुर्गी, आदि को अच्छ २ कुलीन बुद्धि हीन भ्रता से खाने लगे हैं । इस कारगा मदाचारी लोग उन से खान For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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