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प्रथमोऽध्यायः ॥ (ममीक्षा ) यवनों के किस ग्रन्थ से ज्योतिष की उत्पत्ति हुई, उजील से या कुरान से किस ने चलाया, कब चलाया समय का ठीक पला चलाने वाले का नाम क्यों नहीं लिया अभी तो नाप कह चके कि यरोप से फेला अब फिर यवनों का गीत गाने लगे वाह वा ! ॥
(ज्यो० च० ए० ( पं० १७ से-) इस प्रकार मनुष्यमगहलो २७ प्रकार की हुई अथवा १२ प्रकार की हुई, इन २१ समूहों में ज्योतिषियों ने यह लिख दिया कि इस ममूह का विवाह इम म. मूह वाले से न होगा बस यही साम्य है ।।
(समीक्षा ) जोशी जी भूल में पड़े हैं, यही माडीवेध षडाष्टक ही को जो आपने साम्य समझा है । स्मरण रहै कि साम्य में और भी कई एक वात विचारी जाती हैं । यथा वर्ण वश्य तारा योनि ग्रहमैत्री गण भकूट (नाड़ी) गुण तथा दोनों के कुण्डली के ग्रह इस के अतिरिक्त गृह्यसूत्रादि में और भी कई एक प्रकार का साम्प लिखा है। जिस का कुछ २ वर्णन मागे होगा। जिसे सभी भास्तिक सनातनधर्मी निर्विकल्प मानते हैं।
(ज्यो० च० प०९) पर स्लोग इस विद्या को क्यों मानें इसलिये ज्योतिषियों ने लिख दिया है कि जो इस आज्ञा के विरुद्ध व्याह करेगा वह मर जावेगा वा उम के घर में और कोई मर जाय। मैं हरिवंश अथवा गंगाजल को शपथ खाकर कहता हूं कि यह वात ठीक निकली वे लोग अथवा उन के घर के अवश्य ही मर गये इत्यादि ॥
(समीक्षा ) ज्योतिषी पण्डितों ने जो कुछ लिखा मो ऋषि मुनियों के अनुकूल सच्छास्त्रानुसार लिखा है और आप भी गंगाजल हरिवंश का शपथ खा कर सिद्ध कर चुके हैं कि यह वात ठीक निकली । उन की आज्ञा के विरुद्ध जिन लोगों ने व्याह किया वे लोग और उन के घर के अवश्य मत हुए पाठक ! तो फिर उन ऋषि मुनि और ज्योतिषियों की प्रज्ञा
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