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'मुम्बई के जैन मन्दिर' पुस्तक के प्रेरक एवं मार्गदर्शक व्याकरण-साहित्य-न्यायतीर्थ, विन्दान व्याख्याता आचार्य भगवंत ।
श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी महाराज विदलयति कु बोधं, बोधयत्यागमार्थम् । सुगति-कुगतिमार्गी, पुण्यपापे व्यनक्ति || अवगमयति कृ त्या-कृ त्यभेदं गुरुयों । भवजलनिधिपोतस्तं विना नास्ति कश्चित् ।।
-सिन्दुर प्रकरग्रन्थ, श्लोक -१४
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