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मुंबई के जैन मन्दिर
पूज्य पंन्यासजी श्री चन्द्रशेखर विजयजी म. आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में वि.सं. २०५१ का फागुण सुदि १० को चल प्रतिष्ठा हुई थी।
यहाँ के गृह मन्दिर में पंच धातु के आदिनाथ प्रभु की १ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - १ तथा अष्टमंगल - १ शोभायमान हैं।
(२६२) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान सामरणबद्ध रथाकार भव्य जिनालय रेल्वे फाटक के पास, वेंकटेश्वर पार्क, भाईन्दर (प.), जि. थाणा (महाराष्ट्र)-४०१ १०१.
टे. फोन : ८१९ २३ ८२, ८१९ १८०१ विशेष :- मुंबई महानगर और उपनगरो में सर्वप्रथम इस रथाकार जिनालय का निर्माण पूज्यपाद युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी म. साहेबजी के समुदाय के विद्वान वक्ता शासन प्रभावक आचार्य भगवंत श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा व मार्गदर्शन से बाकरा (राज.) निवासी संघवी उकचंद - घेवरचन्द - रिखबचन्द सुपुत्र ताराजी गजाजी नागोतरा सोलंकी परिवार वालोने किया हैं । जैसलमेर के पीले पत्थरो से यह जिनालय मन मोहक बना हैं।
छोटासा देव विमान जैसा यह रथ मन्दिर दूर से ही मानवो को आकर्षित करता हैं । मन्दिर के अग्र भाग में भक्ति मंडप बनाया है और पीछे के भाग में अधिष्ठायक देवस्थान हैं।
आपश्री के २०५० के भायन्दर - बावन जिनालय के चातुर्मास में आपकी निश्रा में श्री शंखेश्वर शणगार जैन श्वे. मू. ट्रस्ट की स्थापना के बाद मन्दिरजी का भूमि पूजन-खनन आसौ सुदि १० को हुआ था। पूरा मन्दिर सांगोपांग तैयार होने के बाद आपकी पुण्यनिश्रा में वि.सं. २०५३ का जेठ सुदि १३ ता. १८-६-९७ को भव्य अंजन शलाका महोत्सव और जेठ सुदि १४ ता. १९-६-९७ को प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ था । महोत्सव के दिनो में साधर्मिक वात्सल्यों में हर हमेश हजारो भाविकोने लाभ लिया था । बडे बडे महोत्सव मंडप और भोजन मंडपो की व्यवस्था बहुत ही सुन्दर बनाई गई थी। पूरे भायन्दर की जैन जनता उन दिनो में परमात्म भक्ति में लीन बन गई थी। सुबह से रात के १२-१ बजे तक निरंतर धार्मिक कार्यक्रम चलता रहता था। उनमें हजारो भक्तजन अधिक भीड से उपस्थित रहते थे। बावन जिनालय - भायन्दर के ऐतिहासिक अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव के बाद इस सामरण वद्ध रथ मन्दिर का भी अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव चिरस्मरणीय बन गया हैं।
___ श्री शंखेश्वर शणगार जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट द्वारा संचालित इस जिनालय के मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ २५" परिकर सहित ५१" श्री आदीश्वर भगवान १९" एवं श्री महावीर प्रभु १९" तथा तीन मंगल मूर्ति सहित पाषाण की ६ प्रतिमाजी, पंचधातु की ५ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी२, अष्टमंगल-२, श्री सिद्धचक्रमहायन्त्र-१, श्री ऋषिमंडल महायन्त्र-१ के अलावा श्री पार्श्वयक्ष, श्री पद्मावती देवी, श्री मणिभद्र वीर, श्री घंटाकर्ण वीर, श्री नाकोड़ा भैरुजी, श्रीचक्रेश्वरी देवी, श्री अंबिका देवी एवं श्री लक्ष्मी देवी बिराजमान हैं।
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