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मुंबई के जैन मंदिर
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लेखक-परिचय
जैन गीतकार व लेखक के नाम से जाने-माने श्री भँवरलाल एम. जैन राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित शिवगंज के निवासी हैं। आपका जन्म विक्रम संवत २००१, श्रावण शुक्ला १२, सोमवार, दि. १-८-४५ को मातुश्री मदनबेन की कुक्षी से हुआ। आपश्री के पिता श्री का नाम मूलचन्दजी हैं।
आपका परिवार जैन धर्म के प्रति दृढ आस्थावान था । बाल्यवय में आप अपने दादाजी के साथ मंदिर, उपाश्रय व प्रवचनों
आदि में जाते थे जिससे बाल हृदय में धर्म के प्रति श्रद्धा के बीज भँवरलाल एम. जैन-शिवगज (वरली-मुंबई)
अंकुरित हो गये । बचपन में ही आप में साहित्य के प्रति विशेष
रुचि रही । पुस्तकों में से चित्र आदि कतरन कर संग्रह करने का आपको बाल्यवय में भी शौक था, फलस्वरुप कई बार पिताश्री के क्रोध का भाजन भी होना पडता था । साहित्य के साथ गीत-संगीत सुनने का भी बड़ा चाव था।
शिक्षा हेतु पाठशाला में जाते ही बालक को सर्व प्रथम 'ऊँ नम: सिद्धम्' उस जमाने में सिखाया जाकर फिर क ख ग घ पढ़ाया जाता था । ब्राह्मण अपने घर शिक्षा देते थे। शिक्षा का प्रारंभ श्री मोरेश्वर शर्मा के पास हुआ । सात वर्ष की आयु में राजस्थान से मुंबई आकर नगरपालिका स्कूल में पहली, दुसरी व तीसरी कक्षा उत्तीर्ण की । पुन: चौथी, पाँचवी व छठ्ठी की शिक्षा शिवगंज में प्राप्त कर तेरह वर्ष की आयु में मुंबई आकर ऑपेरा हाऊस स्थित मारवाड़ी विद्यालय में दसवी तक शिक्षा प्राप्त की। सत्रह वर्ष की आयु में विद्यालय छोड़कर श्रीराम मील गली-वरली-मुंबई स्थित अपने पिताश्री के साथ व्यापार में लग गये।
वि.सं. २०२१ में आपका विवाह स्थानीय (शिवगंज) निवासी श्री कस्तूरचंदजी भलाजी की सुपुत्री फेन्सीबाई के साथ संपन्न हुआ। विवाह के पूर्व ही आपने पान, बिडी, सिगारेट, तम्बाकू, चाय आदि नशीले पदार्थो व समस्त जमीकंद पदार्थो के आजीवन त्याग का नियम गुरुदेव के समक्ष ग्रहण कर लिया था। सात्त्विक आहार एवं सादा जीवन ही आपको प्रिय हैं । रात्रि भोजन त्याग, नियमित जिनेश्वरदेव की पूजा, गुणिजनों के गुणगान, धार्मिक उत्सवो में सहभाग व धार्मिक साहित्य वांचन में आप सविशेष रुचि रखते हैं।
२० वर्ष की आय में ही आपने स्तवन रचना का श्री गणेश कर दिया था। सर्व प्रथम वि.सं. २०२१ में श्री आत्म-वल्लभ सेवा मंडल द्वारा प्रकाशित 'कुसुमांजलि' पुस्तिका में चार स्तवन
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