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मुंबई के जैन मन्दिर
कुंझ विलेपार्ले (पूर्व) हैं। पालनपुर निवासी स्व. सेठ श्री राजमलभाई हेमराजभाई मेहता के सुपुत्र डॉ. अशोकभाई पौत्र डॉ. समीरभाई आदि परिवारवालो की तरफ से जिनालय के लिये जमीन श्री सौभाग्यवर्धक जैन संघ को सप्रेम भेट मिली हैं।
__परम पूज्य लब्धिसूरि समुदाय के प. पू. आ. भगवंत श्री जिनभद्रसूरि म. सा. एवं प. पूज्य आ. भ. यशोवर्मसूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवंतो की पावन निश्रा में वि. सं. २०५४ का माह सुदी ११ शनिवार ता. ७-२-९८ को चल प्रतिष्ठा हुई थी।
यहाँ मूलनायक श्री आदीश्वर प्रभु, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, श्री सीमंधर स्वामी की पाषाण की ३ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - २, अष्टमंगल - १ के अलावा श्री मणिभद्रवीर, श्री पद्मावती देवी, श्री महालक्ष्मी, श्री सरस्वतीदेवी एवं परम पू. आ. विक्रमसूरि गुरूदेव की चरण पादुकाएँ सुशोभित हैं।
श्री आदीश्वर दादा की प्रतिभाजी १८० वर्ष प्राचीन हैं तथा श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ से प्राप्त हुई हैं।
अंधेरी (पश्चिम) (१२०) ___ श्री चन्दप्रभस्वामी भगवान भव्य जिनालय वरसोवा रोड, जयप्रकाश मार्ग, पाण्डु पाटील गली, स्वामी विवेकानंद रोड,
अंधेरी (प.) मुंबई-४०० ०५८. टे. फोन : ओ.६२८ ५४ ६९, ६२८ २९ ०१, ओटरमलजी - ६२८ १० ०४, ६२८ २९ ३१,
रतनचन्दजी - ६२४ ७८ १२. विशेष :- अंधेरी (पश्चिम) के श्री चन्दप्रभ स्वामी जैन मन्दिर, मुंबई के पुराने ऐतिहासिक मन्दिरो में से एक हैं । सं. १९८८ जेठ सुदी ६ दि. १०-६-१९३२ को अचिंत्य चिन्तामणि रत्न से भी अधिक मनोहारी एवं अलौकिक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी दादा की प्रतिमा (मूलनायकजी) की प्रतिष्ठा आगमोद्धारक प.पू. आ. श्रीमद् आनंदसागरसूरीश्वरजी म. की निश्रा में सेठ मोहनलाल हेमचन्द जवेरीने की है। दाई ओर श्री धर्मनाथ प्रभु को सेठ चीमनलाल मोहनलाल जवेरी एवं बायी और श्री आदिनाथ की प्रतिमाजी को सेठ नगीनदास करमचन्दने प्रतिष्ठापित किया । भगवान के मूलशिखर पर कायमी ध्वजा का लाभ सेठ वीशाजी फूआजी लुणावा (राज.) वालोने लिया और उसी समय यक्षयक्षिणी, श्री मणिभद्रवीर, कुलदेवी आदि मूर्तियों की स्थापना भी की गई।
सं. २००६ के आस पास पुराने मंदिर का नूतनीकरण का कार्य उस समय के मेनेजिंग ट्रस्टी श्री वरदीचन्दजी सी. कोठारी के मार्ग दर्शन से हुआ।
सं.२०१३ में मंदिरजी के मध्यभाग में सेठ लालचन्दजी वनेचन्दजी कोठारी (घाणेराव) प्रमुख ट्रस्ट के देखरेख में चौमुखी सुन्दर छत्री का निर्माण कर प. पू. आ. भ. श्री विजय लावण्यसूरीश्वरजी
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