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मुंबई के जैन मन्दिर
१८९२ मगसर सुद ११ को हुई थी। इस मन्दिर में प्रथम व दूसरे माले पर प्रतिमाजी बिराजमान हैं। जहाँ
आरस की २२ प्रतिमाजी, पंचधातु की १६, सिद्धचक्रजी-१२ एवं अष्टमंगल ४ प्रतिमाजी परिवार है। यह मन्दिर झालावाडी भाइयो का कहलाता है।
__ परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्री विजय नेमि-विज्ञान कस्तूरसूरि के पट्टधर आ. विजय चंद्रोदयसूरीश्वरजी म. की पावन निश्रा में वि. सं. २०३४ का चैत्र वद ५ को श्री मणिभद्र वीर की प्रतिमाजी ऑफिस हॉल में बिराजमान की गयी हैं। ऑफिस हॉल में ठीक सामने ही शत्रुजय पर्वत सा दृश्य दिखता हैं उसकी स्थापना जामनगर वाले ओसवाल जवेरी प्रेमचन्द कपूरचन्द हाल मुंबईवालो की तरफ से वि.सं. २०५१ का श्रावण सुद ३ रविवार को हुई थी। मन्दिरजी के पीछे के भाग में बहुत ही सुन्दर विशाल व्याख्यान भवन एवं उपाश्रय की व्यवस्था है।
___ यहाँ श्री चन्द्र प्रकाशे महिला मंडल, श्री झालावाड महिला मण्डल, श्री मंछु कांटा महिला मंडल पूजा भावना में आगे रहती हैं । चैत्र और आसौ मास में आयंबिल की ओली यहां क्रिया सहित कराई जाती है।
इस मन्दिर के जीर्णोद्धार के आद्यप्रेरक प.पू. युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा व मार्गदर्शनानुसार वर्तमान में मन्दिरजी का जीर्णोद्धार का कार्य पूरे जोर शोर से हो रहा हैं। नूतन जिनालय शिखरबद्ध और २४ देवकुलिकाओके साथ भव्य बनाने की योजना हैं । यहां श्री जैन धार्मिक शिक्षण संघ की ऑफिस है, जहाँ से धार्मिक शिक्षण संघ की मासिक पत्रिका निकलती है। जिनके तंत्री लोकप्रिय महाशिक्षक श्री चिमनलाल पाणीताणा कर है।
(५१) श्री महावीर स्वामी भगवान जिनालय गृह मन्दिर
१२४, जवेरी बाजार, खाराकूआँ प्याऊ के सामने,
टे. फोन : ऑ. २०९१५९६, उर्वशीबेन-२८१९२ ३९ विशेष : इस मन्दिरजी की प्रतिमा अति प्राचीन है। गुजरात के प्रांतिज तालुका के मगोडी गाँव में खेत से मिली थी। प्रतिमाजी श्री संप्रति राजा के समय की होने की संभावना हैं।
मूलनायकजी की प्रतिष्ठा सुरत निवासी विसा ओसवाल ज्ञाति के सेठ नगीनचन्द फुलचन्द उस्तादने विक्रम संवत १९७३ श्रावण सुद ६ बुधवार को कराई थी। पहली मंजील पर मूलनायक श्री महावीर स्वामी तथा आजू बाजू में काऊसग्ग में खडी प्रतिमाजी श्री शांतिनाथजी और श्री महावीर स्वामीजी की हैं। बाहर गोखले में श्री आदीश्वरजी और श्री अजितनाथजी है, साथ में दो छोटी स्फटीक की मूर्तिया भी हैं। दूसरी मंजील पर श्री धर्मनाथजी और श्री मुनिसुव्रत स्वामी की सुन्दर प्रतिमाएँ बिराजमान हैं। पंचधातु की छोटी मूर्तिया, सिद्धचक्रजी अष्टमंगल भी है।
इस मन्दिर में तीन पीढीयो द्वारा प्रतिष्ठा करवाई गयी है। हाल में मंदिरजी का संचालन सेठ नगीनचन्दजी
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