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पुरीम् ॥ वसतिं सपरीवाराः सूरयः समुपाविशन् ॥ ६२ ॥ कांश्चिद| ज्ञानकष्टं च सकामां निर्जरां तथा ॥ कांश्चिदाचरतो वीदय सूरय| स्तोषमासदन् ॥६३॥ प्रसन्नमनसो रूप - चन्द्राः श्रीमोहनोऽपि च ॥ | महेन्द्रसू रिसांनिध्या - काशी मध्यवसन्मुदा ॥ ६४ ॥ पिपठीर्मोदनो | वारा-सी विद्यासुधानिधिः ॥ योगोऽयं डर्जनोऽप्यासी - सुलनो नाग्ययोगतः॥६५॥ मोहनो विनयी रूप - चन्द्राङ्गां शिरसा वहन् ॥ पठतीति प्रहृष्टाः श्री - सूरयोऽथ प्रतस्थिरे ॥ ६६ ॥ मानयन् रूपचन्शज्ञां कुर्वन्नावश्यक क्रियाम् ॥ पठन्यथाशक्ति शास्त्र -मास्ते श्रीमो दनो मुदा ॥ ६७ ॥ पूर्वं सारस्वतमयो चन्द्रिकां च ततः परम् ॥ गद्य| पद्यात्मकं काव्य - मधीयाय स सत्वरम् ॥ ६८ ॥ पुष्पेभ्यः सारमादत्ते
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