________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तान्गुरून् ॥ ८० ॥ पुण्याहेऽथ विजहुस्ते शिष्याज्यां सहिता मुदा ॥ पुरं जेसलमेराख्यं जग्मुश्च स्पर्शनावशात् ॥ ८१ ॥ ततो निवृत्ता | निषेव्य पञ्चतीर्थी विशुद्दिदाम् ॥ भूयो ववन्दिरे जावा - दर्बुदे तीर्थनायकान् ॥ ८२ ॥ यथावतरतां तेषा - मर्बुदादेरुपत्यकाम् ॥ मुनिवे - | षधरः कश्चि-नव्यो दृष्टिपथं ययौ ॥ ८३ ॥ आगत्यासौ मोहना
ङ्घ्रि - पङ्कजान्यन्यवन्दत ॥ शातमाष्टच्य पुरतो - ऽतिष्ठच्च विनया|न्वितः ॥ ८४ ॥ सरलप्रकृतिर्बोध - योग्योऽयमिति निश्चयात् ॥ कचे तैर्मुनिभिः किं त्व - मेकाकी पर्यटन्नसि ॥८५॥ स प्राह गीतार्या वेषः | स्वयमेवायमादृतः ॥ कर्मनिर्मूलनार्थं च तीर्थयात्रां करोम्यहम्॥ ८६ ॥ गुरवः प्रोचिरे नव्य धीरोऽसि मतिमानसि ॥ संविग्नोऽसि परं किंचि -
For Private and Personal Use Only