SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध में ही नहीं, बल्कि अपने उदर निर्वाह के निमित्त बडे-बडे विकट प्रदेशोंमें केवल लोटा-डोरी के सहारे जाकर, बड़ी-बड़ी जायदादें उत्पन्न करने का साहस करनेवाले भी ओसवाल ही दिख पडेंगे । खानदेश जैसे प्रदेश में तो यहां तक कहा जाता है कि मारुति ( हनुमान ) मारवाडी और महार (महेतर ) इन तीन का अस्तित्व जहाँ न हो, ऐसा शायद ही कोई गाँव हो । 'मारवाड़ी' यानी अधिकतर 'ओसवाल' ही समजने चाहिये । चाहे जिस अनजान से अनजान परदेशी को भी हजारों रुपये सवाये-ज्योढे के दरसे उधार दे देनेका साहस मारवाड़ी ओसवाल ही कर सकते हैं । सामान्यतः जिस मुहल्ले में अकेले दुकेले मनुष्य को जाने में भी भय प्रतीत होता है, ऐसे मुहल्लेमें दूकान तथा घर लेकर रहने का साहस मी मारवाड़ी ओसवाल ही कर सकते हैं । ओसवाल जाति ने, अपनी क्षत्रियवृत्ति में से एकदम पलटा खाकर, वणिक वृत्ति में भी जैसे अपनी साहसिकता का खासा परिचय दिया है, उसी तरह राजकीय वृत्ति में भी अपनी बुद्धिमत्ता का कुछ कम प्रदर्शन नहीं किया है । बल्कि, अनेक राज्यों में तो ओसवालोंका प्राधान्य लम्बी अवधी से बराबर चलता ही आ रहा है। इस बात की साक्षी इतिहास देता है । इस प्रकार के राज्यों में, बीकानेर, उदयपुर और जोधपुर राज्य के नाम विशेष रूप से लिये जासकते हैं। इन तीनों में भी, उदयपुर राज्य-कि जो हिंदूधर्म के रक्षक के रूप में तथा अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये बलिदान करने में अपना सानी नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy