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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध यह बतलाने की शायद आवश्यकता नहीं है, कि सुप्रसिद्ध ओसवाल जाति वास्तवमें ओसिया नगरी से निकली हुई क्षत्रिय राजपूत जाति ही है, जिसे श्री रत्नप्रभसूरि महाराज ने खानपानादि में शुद्ध करके जैनधर्म की दीक्षा प्रदान की थी । लगभग दो हजार वर्षकी अवधि में ही तो यह जाति सारे भारतवर्ष में इतनी अधिकता से फैल गई है, कि शायद ही कोई ऐसा प्रान्त अथवा शहर हो, जहां ओसवालोंका समूह न मौजूद हो । ओसवाल जाति, मूल में क्षत्रिय जाति होते हुए, कालक्रम से इसने व्यौपारी लाइन भी इतनी अधिक प्रगति कर ली है कि भारतवर्ष का कोई भी व्यापार वह न करना जानती हो, ऐसा नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि जवाहिरात के व्यवसाय से लगाकर छोटे छोटे धन्धों तक इसने अपना आधिपत्य जमा रक्खा है। आज बम्बई, कलकत्ता, रंगून, करांची, हैदराबाद, मद्रास आदि किसी भी बड़े शहर में जाइए, बड़े-बड़े व्योपारी ओसवाल ही दिखाई पड़ेगें । केवल बड़े-बड़े व्यवसाय करने For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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