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जीवनी खंड
१५ फिर आगे बढ़कर उसी प्रभाव से प्रभावित रहस्योन्मुख विरह के पद मिलते हैं । यथा:
हेरी मैं तो प्रेम दिवानी मेरा दरद न जाणे कोय ॥ टेक ॥ सूनी ऊपर सेज हमारी, किस विध सोणा होय ! गगनु मडल पै सेज पिया की, किस विध मिलणा होय ॥ १॥
[ मी० शब्दा. वे० प्रे० प. ४] तीसरे भागवत के प्रभाव से प्रभावित श्रीकृष्ण-लीला और विनय के पद मिलते हैं जो सूरदास के पदों से समानता रखते हैं । उदाहरण के लिए देखिए:
मेरो मन बसिगो गिरधर लाल सों ॥टेक ।। मोर मुकुट पीताम्बरो, गल बैजंती माल । ग उवन के सँग डालत हो जसुमति को लाल ॥१॥
मी० शब्दा० ० ० १.०९] और विनय के पद:
मन रे परसि हरि के चरण | टेक ॥ सुभग सीतल कँवल कोमल, त्रिबिंध ज्वाला हरण । जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण ।। १ ॥
[मी० शब्दा० वे० प्रे० पू०२] विनय और लीला के पदों के अतिरिक्त विरह के पद भी मिलते हैं जिनमें कृष्ण-काव्य के विप्रलम्भ शृंगार की झलक मिलती है। यथा :
डारि गयो मनमोहन पासी ॥ टेक ॥ आँबा की डालि कोइल इक बोलै,मेरो मरण अर जग केरी हाँसी । चिरह की मारी में बन बन डोलू, प्रान तजू करबत ल्यं कासी। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी, तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी ॥
[ मी० की पदावली हि० सा० सम्मेलन सं० पू० ३४-३ अंत में कृष्ण के प्रेम में तन्मय होकर मीरौं गिरधरलालमय हो जाती है
और उनके कंठ से उल्लास भरे पद फूट निकलते हैं जिनमें माधुर्य भाव की सुंदर अभिव्यकि मिलती है । यथा :
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