________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६३
श्रालोचना खंड दसरी ओर देखने और संकेत करने की उसे न अावश्यकता ही थी न अवकाश ही था; इसी कारण मीरों की अनुभूति में वह गम्भीरता और तीव्रता है, वह सरलता और स्पष्टता है जो किसी दूसरे रहस्यवादी कवि में हूँढ़े भी नहीं मिलती।
मीरों का रहस्यवाद साम्प्रदायिक नहीं, वह स्वाभाविक था; रूढ़िगत नहीं स्वच्छंद था। मीरा नारी थीं, उन्हें अपने नारीत्व का पूर्ण ज्ञान और अभिमान था; उन्होंने अन्य वैष्णव भक्तों के समान जीव नारी का अभिनय नहीं किया, वरन स्वयं अपने गिरधर नागर की दासी बन गई और अपनी सच्ची प्रेम-साधना की स्पष्ट और उत्कृष्ट व्यंजना की। मीरों की सरल और सष्ट शैली का यही रहस्य है।
पत्तों के बीच एक कृत्रिम पक्षी के आँखों का निशाना बनाना था। द्रोण के प्रश्न करने पर युधिष्ठिर आदि अन्य राजकुमारों ने बतलाया कि वे पक्षी की आंखों के अतिरिक्त पक्षी, पत्ते वृक्ष इत्यादि भी देख रहे हैं और वे सभी इस परीक्षा में असफल रहे । अंत में अर्जुन की बारी आई । प्रश्न करने पर उन्होंने बतलाया कि वे न तो वृक्ष देखते हैं, न वृक्ष के पत्ते, • और पक्षी की आंख के अतिरिक्त उसके अन्य अंग भी उन्हें दिखलाई नहीं पड़ रहे थे। अजुन ने ही लक्ष्य वेध किया ।
For Private And Personal Use Only