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मीराँबाई में बाँध कर साधारण जनता के उपयोग के लिए संचित किया गया था । उत्तर भारत में जिन कवियों श्रीर आचायों ने भक्ति की सरलधारा प्रवाहित की थी उनमें भी स्पष्ट दो वर्ग थे। प्राचार्यों में स्वामी रामानंद और महाप्रभु बल्लभाचार्य तो विशुद्ध प्राचार्य थे जिन्होंने बाद और तर्क से, उपदेश और निदेश से, शिक्षा और दीक्षा से लोगों को भक्ति का उपदेश किया, परंतु
चैतन्य महाप्रभु कवि गायक श्रेणी के प्राचार्य थे, जिन्होंने अपनी भक्ति भावना के प्रागेश से जनता को प्राकृष्ट किया था । इसी प्रकार भक्त कवियों में भी स्पष्ट दो वर्ग थे । एक वर्ग विशुद्ध कवि-गायकों का था और दूसरा वर्ग प्राचार्यों का। जयदेव, चंडीदास, विद्यापति और मीराँबाई अपनी भक्ति-भावना के उल्लास में रस की धारा उमड़ाने वाले विशुद्ध कवि गायक थे और गुसाई तुलसीदास, कबीर और नंददास भक्ति-धर्म का मार्ग प्रशस्त करने वाले कवि-प्राचार्य थे, विशुद्ध कवि-गायक नहीं । एक मध्य श्रेणी अंधे कवि सूरदास की थी जो वास्तव में कवि-गायक थे परंतु संसर्ग-दोष से उन्हें श्राचार्यत्व भी करना पड़ा।
भक्त कवियों में प्रमुख कवि प्राचार्य गोसाई तुलसीदास थे जिन्होंने • 'कलि कुटिल-जीव-निस्तार-हित' एक ऐसे 'मानस' की व्ययस्था की जिसके एक अक्षर के उच्चारण-मात्र से सभी पाप धुल जाते थे । यह सच है कि रामचरित मानस के प्रारम्भ में ही गोसाई जी ने स्पष्ट शब्दों में लिख दिया है कि :"स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा भाषा निबंध मति मंजुल मातनोति" परन्तु बालकांड में राम-कथा प्रारम्भ करने के पहले जो अति विस्तृत भूमिका दी गई है उसे पढ़कर कोई भी नहीं कह सकता कि यह कथा केवल 'स्वान्तः सुखाय, लिखी गई थी। सच तो यह है कि जनता को राम भक्ति के प्रति आकृष्ट करने का जितना सफल प्रयास रामचरित-मानस में मिलता है उतना शायद ही और कहीं मिल सके । कथा और प्रसंग से, तर्क और बुद्धि से,प्रतीत
और प्रमाण से, उपदेश और निदेश से, जितनी प्रकार भी सम्भव था, गुसाई तुलसीदास ने राम-भक्ति को सबसे अधिक सहज, सुलभ और फलदायक प्रमाणित किया। भक्ति-भावना का मार्ग प्रशस्त करने वाले वे एक अत्यन्त
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