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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७६ ) हुए वह ध्यानावस्थित होने का अभ्यास कर सके । इस सम्बन्ध में यहाँ शास्त्रों ने एक पवित्र मूत्ति की व्यवस्था की है जिसकी व्याख्या करते हुए 'ॐ' पर ध्यान करने की विधि बताई गई है । स्वरूप के स्थान में ध्वनि होने के कारण ॐ पर ध्यान जमाना एक कठिनतर क्रिया है। यहाँ ॐ के पाद समझाने के बदले इसकी उच्चारण करने वाली मात्रामों की व्याख्या की गयी है और इनमें ही मनुष्य के व्यक्तित्व के विविध अंगों का आरोप किया गया है। वेदान्त के विद्यार्थी के लिए ध्यान की प्रारम्भिक अवस्थानों में मनोवैज्ञानिक एवं स्थूल भाव रखने वाले पदार्थों में ॐ की मात्रामों का आरोप करने का अभ्यास करना आवश्यक है । प्रस्तुत मंत्र तथा अगले दो मंत्रों में इस विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। दो वस्तुओं की तुलना करते समय हमें यह देखना है कि उनमें किस किस बात में समानता पायी जाती है । यदि इन दोनों में कोई समान विशेषता न हो तो इनमें तुलना करने का प्रयास विफल होगा । हम दूध को मधु के समान नहीं कहते किन्तु चन्द्रमा की छटा को इससे (दूध से) उपमा देते हैं। इस प्रकार यदि 'श्रुति' जाग्रतावस्था के वैश्वानर की ॐ की 'अ' मात्रा से तुलना करना चाहे तो इसे उन विशेषताओं का उल्लेख करना होगा जो इन दोनों में समान रूप से हों। इस मंत्र में इन विशेष गुणों की व्याख्या की गयी है । ऋषि ने कहा है कि वैश्वानर तथा मात्रा 'अ' में सर्वव्यापकता पायी जाती है और ये दोनों पहले आते हैं। ___सब ध्वनियों का मूल 'अ' है। मनुष्य तनिक मुख खोल कर बाहिर की ओर वायु निकालने से 'अ' का उच्चारण कर सकता है । संसार की प्रायः सब भाषामों को वर्णमालामों का पहला अक्षर 'अ' है। नवजात शिशु के प्रथम रुदन का श्री गणेश 'अ' ध्वनि से ही होता है । इस तरह सबसे पहला उच्चारण किया जाने वाला अक्षर 'न' है और हमारी अनुभव-शृंखला की पहली कड़ी जाग्रतावस्था है क्योंकि स्वप्नावस्था में हम उन्हीं वासनाओं को प्रकट करते हैं जिन्हें हम जाग्रतावस्था में प्राप्त कर चुके होते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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