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वस्तुओं से परम-सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। परम-सुख ही 'ब्रह्म' है न कि यह स्वप्निल क्षणिक-विश्व । ____ इसलिए हमें सनातन एवं सुख-निधान 'ब्रह्म' को अनुभव करने में प्रयत्नशील रहना चाहिए जिससे हम इस अविनाशी तथा अक्षर सुख-स्वरूप में अधिष्ठित रह पायें । श्री गौड़पाद हमें इस सनातन एवं सुखमय 'ब्रह्म' से साक्षात्कार कराते और इस दिशा में हमारे लिए एक टेढ़े-मेढ़े मार्ग के स्थान में छोटे तथा सीधे मार्ग की व्याख्या करते हैं । इस अद्भुत कृति 'कारिका' की यह महान विशेषता है।
भारत की राजधानी के अंग्रेज़ी-शिक्षित व्यक्तियों का सौभाग्य है कि उन्हें स्वामी चिन्मयानन्द जैसे आधुनिक शिक्षा से अलंकृत संन्यासी के मुख से 'कारिका' के प्रवचन सुनने का अवसर मिला है। मुझे विश्वास है कि वे (चिन्मय) आपको आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से, न कि प्राचीन संस्कृत-पण्डितों की परिपाटी के अनुसार, यह पाठ्यविषय समझायेंगे।
संभव है इन प्रवचनों का श्रवण करने से 'अजातवाद' आपकी समझ में आजाय और आप विवेक द्वारा इस विचार से पूरे सहमत होजायँ कि 'तुरीय-ब्रह्म' ही यथार्थ है न कि तीन अवस्थाओं वाला संसार जिसकी वास्तव में कोई रचना नहीं होती। इसी कारण यह (संसार) एक दीर्घ-कालिक स्वप्न है । "मैं 'तुरीय ब्रह्म' हूँ", वेदान्त के इस तत्व को केवलमात्र समझ लेने और इसको अनुभव करने एवं इसमें अधिष्ठित होने में महान् अन्तर है।
इसलिए परमात्मा का सदा स्मरण करते रहिए । भगवत्कृपा से उसके वास्तविक 'तुरीय-स्वरूप' की अनुभूति हो सकती है । परमात्मा को प्रेम तथा श्रद्धा से भजते रहें। उसके नाम का जप करें और सदा उसी के ध्यान में मग्न रह कर उसका गुणगान करते रहें। आप जो भी कार्य करें वह उसी के अर्पण हो । इस प्रकार निरन्तर अभ्यास करते रहने से इस विक्षिप्त एवं मलीन मन में स्थिरता तथा शुद्धि आ जायेगी,
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