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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) इन्हें त्रिविध अनुभव जानिए । 'वैश्वानर'सदा स्थूल पदार्थों को अनुभव करता है; 'तेजस्' सूक्ष्म-जगत् के पदार्थों का उपभोग करता है और 'प्राज्ञ' परम सुख का । स्थूलं तर्पयते विश्वं प्रविविक्तं तु तैजसम् । आनन्दश्च तथा प्राज्ञ त्रिधा तृप्ति निबोधत ॥४॥ इन्हें त्रिविध-तृप्ति जानिए । 'वैश्वानर' स्थूल पदार्थों से सन्तुष्ट होता है, 'तेजस्' सूक्ष्म पदार्थों से तृप्त होता है और 'प्राज्ञ' परमसुख में विचरण करता है। उपनिषद् के तत्सम्बन्धी स्थलों की व्याख्या करते हुए हम इन दो मंत्रों में दिये गये विचारों को पहले विस्तार से स्पष्ट कर चुके हैं। इस बात को पूरी तरह समझाने के उद्देश्य से हमने प्रस्तावना वाले अध्याय के आदि-भाग में एक तालिका दी है ( देखिए पृष्ठ १६) जिसमें भोग, तृप्ति, स्थानत्रय के विचार से इसका वर्गीकरण किया गया है। श्री शंकराचार्य ने इस पर कोई टीका-टिप्पणी न करके केवल यह लिखा है कि इन परिभाषाओं की पहले व्याख्या की जा चुकी है। त्रिषु धामसु यद्भोज्यं भोक्ता यश्च प्रकीर्तितः, वेदैतदुभयं यस्तु स भुजानो न लिप्यते ॥५॥ जो व्यक्ति ऊपर बताये गये अनुभवी तथा अनुभूत को तीन उपरोक्त अवस्थानों में क्रियमाण होते हुए जानता है उस पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता चाहे वह इन तीन ( 'जाग्रत', 'स्वप्न' और 'सुषुप्त') अवस्थाओं से सम्बन्धित जगत् के कितना ही सम्पर्क में क्यों न प्राता रहे। यहाँ हमें यह न समझ लेना चाहिए कि इस विविध-अहंकार को समझ लेने तथा उपनिषद्-ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही हम उस सम्पूर्णता से सम्पन्न हो जायेंगे जहाँ हमें हमारे कर्म अथवा नश्वर अनुभव लिप्यमान नहीं कर सकते । उदाहरण के तौर पर आप ने उपनिषद् के ज्ञान को सुना और समझा For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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